Wednesday, August 21, 2019

मै न होता तो क्या होता


"मैं ना होता तो क्या होता" पर एक प्रसंग  
              

एक बार हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया ! यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ? परन्तु आज आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...

        मै न होता तो क्या होता
   

Saturday, August 17, 2019

ऐसी होती है "माँ"



एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी,
मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी...

तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया,
माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया...

माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी,
तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी...

माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया,
फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया...

फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी,
और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही...

फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी,
क्या सुनोगे तब तक कोई परियों बाली कहानी...

मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी,
जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी...

माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही,
परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही...

फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया,
चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया...

माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी,
फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी...

जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था,
घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था...

राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था,
कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था...?

न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था,
चूल्हा भी तो माँ के आंसुओं से ही बुझा था...

फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती,
अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती...

अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को मां कैसे समझाती,
या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती...?

हलवे की बात वो कहानी में टालती रही,
जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही...

ऐसी होती है "माँ"

असली पूजा

ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति ...