Tuesday, September 10, 2019

आदतें औकात बता देती हैं



एक राजा के दरबार मे एक अपरिचित व्यक्ति नौकरी मांगने के लीये आया।
उससे उसकी शैक्षणिक योग्यता तथा विशेषता पूछी ग ई, तो वो बोला, "मैं किसी भी मनुष्य अथवा पशु के व्यवहार को देखकर उसके बारे में सब कुछ बता सकता हूँ।
राजा ने उसे अपने खास घोडों के अस्तबल का मुखिया बना दिया।
कुछ दिनों बाद राजा ने उससे अपने मनपसंद और सबसे महंगे घोड़े के बारे में पूछा, तो उसने कहा, "ये घोडा नस्ली नही है।"
राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से उस घोडे बेचने वाले व्यापारी को बुला लिया, जिसने हजारों स्वर्ण मुद्राएं लेकर वह घोडा बेचा था।
उस व्यापारी ने बताया, यह घोड़ा तो एकदम नस्ली हैं, पर इसको जन्म देते ही इसकी मां मर गई थी, तो ये एक गाय का दूध पीकर उसीके साथ पला-बढा है।
राजा ने अपने अस्तबल प्रमुख को पास बुलाया और पूछा, "तुमको कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?"
उसने कहा, "जब ये घास खाता है, तो गायों की तरह सर नीचे करके खाता है। जबकि नस्ली घोड़ा घास मुंह में लेकर सर उठा लेता हैं।
राजा नवनियुक्त दास के इस गुण से बहुत प्रसन्न हुआ, उसके घर इनाम स्वरूप अनाज, घी, मुर्गे, और अंडे भिजवा दीये।
फिर उसे अस्तबल से हटाकर रानी के महल में नियुक्त कर दिया।

कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी, तो उस दास ने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं, लेकिन रानी साहिबा पैदाइशी नहीं हैं।”
राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने तुरंत अपनी सास को बुलाया।
सास को पूरा मामला विस्तार पूर्वक बताया तो वह बोली,_* *_"दामादजी!_* *_वास्तविकता यह है कि, आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी के जन्म लेते ही रिश्ता मांग लिया था।
हमने आनंदित होकर घर बैठे आये हुये इस संबंध के लीये तुरंत हामी भी भर दी थी।
लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, पर हमने आपके रजवाड़े से रिश्ता बनाये रखने के लीये किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"
राजा ने फिर अपने दास से पूछा "यह सब तुमको कैसे पता चला ?"
दास बोला, "रानी साहिबा का अपने नौकरों के साथ जो व्यवहार है, वह गंवारों से भी बुरा हैं। एक खानदानी व्यक्ति का दूसरों से व्यवहार करने का एक अत्यंत शालीन तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही है।"
राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और इनाम के रूप में अनाज की बोरियाँ और भेड़ बकरियां देदी और उसे अपने दरबार मे तैनात कर दिया।
कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर दास को बुलाया और अपने बारे में पूछा।
नौकर ने कहा, "हुजूर! प्राणों की सुरक्षा का वचन देते होंगे, तो कुछ कहूँ।”
राजा ने उसे वचन दे दिया।
उसने कहा, "न तो आप किसी राजा के बेटे हो और न ही आपका चालचलन एवं व्यवहार राजा-महाराजाओं वाला है।"
राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर वह दास को उसके प्राणों की सुरक्षा का वचन दे चुका था।
राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा।
मां ने कहा, "बेटा! यह सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो। हमारी खुदकी कोई औलाद नहीं थी, तो हमने तुम्हें गोद लेकर पाल लिया।”
राजा ने दास को बुलाया और पूछा, "ये बताओ कि, तुम्हें यह, कैसे पता चला ?”
दास ने कहा "जब भी खानदानी राजा-महाराजा प्रसन्न होकर किसी को इनाम दिया करते हैं, तो हीरे, मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं। लेकिन आप तो सदा भेड, बकरियां, खानपान की चीजें ही दिया करते हैं।
ये व्यवहार किसी राजा का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"

कोई भी व्यक्ति कितना भी धनी, बाहुबली एवं समृद्ध हो, ये सब बाहरी दिखावा है। 
मनुष्य का वास्तविक परिचय उसके व्यवहार और उसकी नियत से ही होती हैं।

असली पूजा

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