Wednesday, June 19, 2019

नीला रूमाल


नीला रूमाल 
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"अब कैसी हो.? "एक अनजानी सी आवाज सुनकर. मैंने आवाज़ की तरफ गर्दन घुमानी चाही तो मेरे होठों से एक दर्द भरी सिसकारी निकल गई.
"बहुत दर्द हो रहा है. "एक पुलिस वाले को अपने ऊपर झुके देखकर मैं घबरा गई.
मैं कभी उसे, कभी हाथ में चढ़ते ग्लूकोज को देख रही थी.
"आप परेशान न हो. सड़क पार करते समय एक अ|टो वाला आपको टक्कर मारकर चला गया था. गिरने के बाद आप बेहोश हो गई थीं. मैं उधर से ड्यूटी जा रहा था. आपको यहां भर्ती कर दिया. "वह नपे तले शब्दों में बोला.
"ओह, धन्यवाद. "मैंने धीरे से कहा. मुझे याद आया कि मैं मॉ के घर जाने के लिए घर से निकली थी.
"धन्यवाद की कोई बात नहीं है. मेरा फर्ज था. वैसे भी पुलिस वाला हूँ. "कहकर वह वो हल्के से हँसा.
"मेरी बजह से आपकी ड्यूटी. "
"आप चिन्ता न करें. मैंने फोन कर दिया है. आज की छुट्टी मिल गई है. "उसके शब्दों में स्नेह था.
इस बार मैंने उन्हें गौर से देखा. पुलिस की वर्दी में सोभ्य लग रहे थे. साथ ही उनकी वर्दी पर लगे स्टार बता रहे थे कि वो इंस्पेक्टर हैं.
"सर, आप नीला के साथ हैं. यह इंजेक्शन ले आइए. "नर्स ने पुलिस वाले के हाथ में दवाई का पर्चा  देते हुए कहा और हाथ में लगी ड्रिप निकालने लगी.
"इन्हें मेरा नाम कैसे पता? आप कह रहे थे कि मैं बेहोश थी. "एक बार फिर मैं संशय में पड़ गई.
"मैंने ही लिखाया था. "
"आपको कैसे....... "मेरी बात अधूरी रह गई. वह दवाई लेने चला गया.
मैं गुत्थियां सुलझाने लगी. इसे मेरा नाम कैसे पता. जानता होगा. लेकिन कैसे? अपनी जान पहचान वालों में उसका चेहरा नहीं मिल रहा था.
    वह वापिस आया तो उसके हाथ में दवाई के पैकिट के दूध का गिलास और बिस्किट भी थे.
दवाई नर्स को थमाकर, वह बिस्किट का पैकिट खोलने लगा.
"कुछ खा लीजिए. आपको इंजैक्शन लगेगा. "उसने मुझे सहारा देकर बिठाते हुए कहा.
"पहले राखी........ मेरे मुँह से निकला. "आज रक्षा बंधन था. मॉ के घर जा रही थी. राखी बांधने के बाद ही खाना था.
ओह, रुको, "उसने मेरी बात काटते हुए जेब से पर्स निकाला और उसमें से एक नीला रूमाल निकाल कर मेरी ओर बढ़ा  दिया.
 रूमाल मेरे हाथों में था. मैं कुछ पुरानी यादें जोड़ने की कोशिश करने लगी. मैंने रूमाल को पूरी तरह खोला तो अचानक मेरे मुँह से निकला -"यह रूमाल आपके पास कैसे? यह तो मेरा है. मैंने पहली बार इस पर अपना नाम काढ़ा था."
"सच में तुम नीला हो? "उसकी आँखों में बहुत सारे जुगनू एक साथ जगमगा गये.
"हां, यह रूमाल तो मैंने रक्षा  बंधन पर स्कूल में एक पुलिस वाले को बांधा था. "
"मुझे याद है. लड़कियां अफसरों के राखी बांध रही थीं.  उस समय मैं रंगरूट था. तुमने मुझे एक तरफ चुप और उदास खड़े देखा तो राखी की जगह यह रूमाल मेरी कलाई मैं बांध दिया था. तुमने स्कूल की यूनिफार्म के साथ भी पायल पहनी  हुई थीं. मैंने तुम्हारे पैर छूते हुए देखा था. मैं रंगरूट था. उस समय मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं था. साथ ही मेरी कोई बहन भी नहीं थीं. मैंने इस रूमाल को सहेज लिया. तब से रक्षाबंधन पर मैं इसी रूमाल को किसी भी बहन से कलाई में बंधबाता हूँ और उपहार में पायल ही देता हूँ. वह एक ही सांस में कह गया.
    मैं मंत्रमुग्ध सी  उसे देख रही थी.
"क्या सोच रही हो. आज मुझे बिछुड़ी बहन मिल गई है. अब किस बात का इंतजार. "वह मुझे खोया हुआ देखकर बोला.
"हां भैया, इस बार और यह रूमाल बंधवा  लो. आगे से राखी ही बांधूगीं. "कहते हुए मैंने उसकी कलाई में वह रूमाल बांध दिया.
लेकिन मैं यह रूमाल वापिस नहीं करूँगा. "वह हँसते हुए बोला.
मैं मुस्कुरा  दी  .
उसने जेब से पायल निकालीं और मेरे पैरों में पहनाने लगा.
जिदंगी के इस इत्तेफाक पर वह भी खुश था और मैं भी.

असली पूजा

ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति ...