"गुड इवनिंग सुष्मिता मेम !" शैलेश ने ट्यूशन के लिए मेम के घर पर पहुँचते ही कहा।
"आओ शैलेश!" .....शैलेश के शरीर से बहुत ही मनमोहक खुशबू आ रही थी। सुष्मिता ने ही कहा था उसके पेपर जांचने के बाद कि उसे किसी हेल्प की जरुरत हो तो वह आ सकता है उसके घर पढ़ने के लिए।......शैलेश कॉलेज स्टूडेंट था और मन में कई तरह के भाव थे उसके। वो तो अपनी फेवरेट मेम से इस अचानक मिले निमंत्रण पर हैरान था। वह घर की दीवारों पर इधर- उधर देख रहा था। सुष्मिता चाय बनाने अन्दर चली गई थी। दीवार पर राधा-कृष्ण की बड़ी ही सुन्दर पेंटिंग सजी हुई थी।
"लगता है मेम को प्रेम हुआ है।" उसने सीने में साँस भरी ......और मन में चल रहे विचारों ने उसके होंठों की लाली को और बढ़ा दिया ।
"शैलेश यहाँ आ जाओ।" सुष्मिता ने चाय की ट्रे रखते हुए उसे ट्यूशन रूम में बुलाया । शैलेश के मन में इंटरनेट पर देखे कई वीडियो घूम गए। उसे सुष्मिता सिर्फ़ औरत ही दिखाई दे रही थी। शैलेश चेयर पर जाकर बैठ गया।
"शैलेश! तुम्हारी इंग्लिश तो ठीक ही है मगर तुम्हारे आंसर में कंटेंट बहुत कम है। क्या तुम्हे ये सब्जेक्ट सही से समझ नहीं आता ? .....कोई भी प्रॉब्लम हो तो खुलकर पूछ सकते हो।" चाय का कप आगे बढाते हुए बोली सुष्मिता ।
"मैम! मैंने कोशिश तो की है लेकिन आप मुझे कोई अच्छी गाइड या बुक्स सजेस्ट कर दीजिए।" शैलेश बोला।
सुष्मिता काफी देर तक सब्जेक्ट को क्लियर करती रहीं। उसे हर बात को समझाती रही। शैलेश ध्यान से सुनने की कोशिश कर रहा था पर शैलेश की नजर बुक पर कम सुष्मिता पर ज्यादा थी .......
"शैलेश ! अब जाकर सब्जेक्ट को अच्छे से रिवाइज कर लेना। ये कुछ नोट्स हैं।" सुष्मिता ने पेपर थमाते हुए कहा।
"जी मैम! मैं ख्याल रखूंगा कि अगली बार मेरे नंबर अच्छे आयें।"
"हाँ, मैं भी यही चाहती हूँ कि मेरा कोई भी स्टूडेंट कमजोर न रहे। कोई भी दिक्कत हो तो तुम मुझसे कभी भी पूछ सकते हो।"
शैलेश तो न जाने क्या सोचकर आया था। मगर यहाँ तो मैम कोई सिग्नल ही नहीं दे रहीं थीं। शैलेश का मन अधीर हो उठा था।
"क्या मैं वास्तव में अब जाऊं मेम!" मेम की आँखों में आँखें डालते हुए मुस्कुराया दिया वो ।
"हाँ, अब मेस भी बंद होने का समय है। मैं तो रात को सिर्फ़ खिचड़ी खाती हूँ। शैलेश बेटा अगर चाहो तो तुम भी खा सकते हो मेरे साथ। पर तुम लोग तो चटपटा पसन्द करते हो।"
शैलेश को काटो तो जैसे खून नहीं था। निगाहें जमीन की तरफ़ गड गई थीं। अब वह सुष्मिता की तरफ़ देख भी नहीं पा रहा था।
"शैलेश! अगर आज मेरा बेटा होता तो शायद तुम्हारे जैसा ही होता। तुम क्लास में रीना को पसन्द करते हो ऐसा लगता है मुझे। जीवन में प्यार जरुरी है, मगर प्यार को पाने के लिए और बनाए रखने के लिए पढ़ाई, अच्छी नौकरी, व्यापार और अच्छी सोच का होना जरुरी है। मैं सब के सामने तुम्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि तुम्हारी उम्र की कमजोरियां क्या हैं इसलिए तुम्हें घर बुलाया था। अब मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम मुझे निराश नहीं करोगे।"
"यस मैम, मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा।" शैलेश जाने के लिए उठ खड़ा हुआ था।
सुष्मिता ने एक डिब्बा उसकी तरफ़ बढ़ा दिया।
"ये क्या है, मैम?"
"ले जाओ, खाना खाने के बाद खाना, इसमें मेरे हाथ के बनाए लड्डू हैं। बड़ी इच्छा होती है कभी-कभी कि कोई माँ कहकर पुकारता मुझे भी।" सुष्मिता के ऐसा कहते ही शैलेश भावुक हो गया।
"क्या मैं......." और सुष्मिता ने उसके सिर पर हाथ रख दिया था। सुकून की गंगा जैसे उसके सारे गलत विचारों को बहा ले गई थी। अब वह रुक नहीं पा रहा था वहाँ।
"गुड नाईट माँ......" आँसू पोंछते हुए बस इतना ही कह पाया वो ।