"हमे छोड़ कर मत जाओ मम्मी ,,, हम आपके
बिना बिलकुल अकेले हो जायेंगे " उषा के दोनों बेटे संजू और कपिल दोनों ICU के बाहर खड़े रो रहे थे ,,, साथ में पिता हंसराज उनको होंसला देने में प्रयासरत थे। केवल 40 साल की उम्र में हृदयघात ? हंसराज की समझ से परे था। पापा दादा दादी को फ़ोन करदु ? कपिल ने पूछा। "करदो मगर ये मत बताना हृदयाघात हुआ है " परेशां हो जायेंगे। कहना मम्मी की तबियत थोड़ी ख़राब है ,, आपको याद कर रही है। "ठीक है पापा "
"डॉक्टर कैसी है उषा ? " अचानक सदमा लगने से हुआ ये ,,, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे है। बाकि भगवान् से दुआ कीजिये ,, "पापा आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए घर जाकर " ,,, हम दोनों है मम्मी का ध्यान रखने के लिए। हंसराज जी का अंदर ही अंदर कुछ बिखर सा रहा था। "नहीं में यही आराम करता हूँ रेस्ट रूम में " "ठीक है पापा " अंदर जाकर हंसराज जी लेट गए ,, और सोचने लगे क्या भूल हुई हमसे ? कितना चाव से लाड से दोनों बच्चो को पाला।
अपना बचपन, जवानी सारी अभाव में गुजरी ,,, बाबूजी शंकरदयाल सरकारी विद्यालय के अध्यापक ,,, जो घर में भी पिता से ज्यादा मास्टर जी ही थे। पिता ने कभी गोद में नहीं उठाया ,, उस समय मर्द बच्चे को गोद में उठाना अपनी शान के खिलाफ समझते थे ,,, कभी कोई चीज मांग लो... कभी नहीं मिली ,,, एक बार "बाबू जी मुझे साइकिल दिलवा दो ? " "क्या करेगा साइकिल लेकर ?" 2 किमी पर ही स्कूल है पैदल जायेगा सेहत बनी रहेगी। मन मसोस कर रह गया था ,, इसी तरह पढाई के लिए कितनी पिटाई हुई,, लगभग प्रतिदिन इंटर पास करने तक। सरकारी स्कूल से पढ़ने वाले हंसराज ,, बाबूजी ने हर अध्यापक को कह रखा था इसको बिलकुल ढील नहीं देनी . ,, चाहे जान से मार दो ,, मगर इसे पढाई में पीछे नहीं रहने देना।
जो बना घर में वही खाने को मिलता था ,, कभी बाहर का चटोरापन करने की छूट नहीं मिली ,,, "बाबूजी चलो कहीं पहाड़ो पर घुमा लाओ ? " एक बार बड़ी हिम्मत करके कहा। "आज तो कह दिया आज के बाद मत कहना "
सुबह 4 बजे उठाना ,, पानी भर कर लाना ,, पशुओं का चारा त्यार करना फिर 7 बजे स्कूल जाना ,, स्कूल से आते ही बाबूजी पढ़ाने के लिए लेकर बैठ जाते थे ,,,
खूब रोता दिल ,, हर पल मन सोचता घर है या कारागार ? यही था अब किसी तरह बाहर पढाई के लिए चला जाऊं। मन ही मन पिता को कोसता था ,, लेकिन थर थर काँपता था उनके सामने।
10वी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद छात्रवृति के लिए भी चयन हुआ ,, इण्टर की पढाई में बाबूजी ने कभी नहीं पढ़ाया ,, या यु कहिये खुद ही पढ़ने में समर्थ हो गया था। बाबूजी ने कृषि स्नातक में दाखिला कराया ,,, लेकिन मन नहीं लगा ,, एक साल के बाद नया कोर्स आया सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग का डिप्लोमा ,,, हंसराज ने पिता से हिम्मत करके कहा मुझे ये कोर्स करवा दो ,, ,शंकरदयाल ने बहुत मना किया, लेकिन ज़िद करके डिप्लोमा करने चला गया। साथ में यह भी कहा आपका सारा पैसा सूद सहित चूका दूंगा। 3 साल आजादी के गुजर गए हँसते हँसते ,, पता ही नहीं चला। बस ये सोचता दिन जो पखेरू होता पिंजरे में मैं रख लेता ,, लेकिन वक़्त का चक्र कब रुका है चलता है निरंतर चलता ही जाता है।
नौकरी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी ,,, सरकारी नौकरी नहीं मिली ,, प्राइवेट जॉब के लिए 2 साल का संघर्ष करना पड़ा। आखिर अच्छी नौकरी मिली MNC में ,,, डिप्लोमा में कुल 30000 हजार खर्च हुआ , सारा हिसाब हंसराज ने लिख रखा था,,, 50000 वापिस करदिए पिता को ,, पिता खुश हुए ,, जब अपनी औलाद खुद्दार हो, कामयाब हो तो गर्व होना स्वाभाविक ही है ,, फिर हंसराज के जीवन में आयी लक्ष्मी यानि धर्म पत्नी उषा जी ,,, एक साल में घर में संजू और चौथे साल कपिल की किलकारियां घर में गूंजने लगी। शंकरदयाल और हंसराज की माँ सुमित्रा देवी का तो मानो बचपन ही लोट आया था ,, पोतों को पाकर दोनों बहुत खुश थे।
हंसराज मेट्रो सिटी में परिवार को लेकर आ गया माता पिता गांव में ही रहते थे ,, कभी कभार मिलने जरूर आ जाते थे।
हंसराज ने सोचा जो मेरे सपने थे,, जो मेने झेला वो मेरे बच्चे नहीं झेलेंगे। अपनों बच्चो को माँ से भी जयादा चाव लाड करते थे ,,, बहुत कम पिता होते है जो बच्चे का मल साफ़ करते होंगे , लेकिन हंसराज ने कभी घृणा नहीं की ,, हर ख्वाइश पूरी करने की कोशिश करते। धीरे धीरे बच्चे बड़े हो रहे थे अच्छे स्कूल में डाल दिया उसको,, हंसराज का सपना पर्यटन का ,,, उन्होंने वो खूब पूरा किया ,,बच्चो के साथ घूमने जाना ,, बच्चों पर कभी हाथ नहीं उठाया। उषा देवी भी बच्चों को असीम स्नेह देती थी ,,सब सही चल रहा था ,,, कई बार हंसराज को संजू की गलती पर गुस्सा आता ,, डांटने या पीटने की कोशिश करता तो मम्मी उषा देवी बीच में आ जाती। जब संजू 10 साल का था IPAD की जिद करने लगा ,, हंसराज अख़बार में पढ़ते रहते थे ,, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों को खराब करते है ,,, मना कर दिया "उषा इन चीजों से हमने बच्चो को बचाना है ,, अगर नहीं बचाया तो इनके भविष्य के लिए खतरा है। "देखो जी बच्चा है ,, जब दूसरे बच्चो को देखता है ,, इसके मन पर क्या बीत ती होगी ? ...
इंसान कई बार इस लिए भी झुक जाता है ,, कहीं कलेश न हो जाये। संजू स्कूल न जाकर इधर उधर घूमता पाया गया ,,, लेकिन उषा ने बताना उचित नहीं समझा। उसको डर था कहीं हंसराज संजू को मारे न। इसी तरह हंसराज उषा के आगे झुकते चले गए ,,, कितनी बार समझाते तुम्हारे लाड प्यार से हाथ से निकल जायेगा। 12 साल की उम्र में हंसराज ने कहा फ़ोन दिलवाना है तो कीपैड वाला दिलवा दो ,, नहीं संजू को स्मार्ट फ़ोन पसंद था ,, वो भी मजबूरी में दिलवाना पड़ा। हंसराज ने बहुत समझाया ,,, गलत इस्तेमाल भी कर सकता है ,, जैसे पोर्न साइट्स वगेरह । लेकिन उषा के लाड के आगे हंसराज को झुकना पड़ा।
दिन पर दिन पढाई में पिछड़ता गया ,, अब इतना उच्छृंखल हो गया था ,, मम्मी पापा के आगे जुबान चलाने लग गया था। देखा देखि छोटा कपिल भी बिगड़ने की राह पर चल पड़ा था। "कहाँ कमी छोड़ी हमने " अपने पिता की तरह में पढ़ा नहीं सकता था ,, वजह मेरी लम्बी ड्यूटी टाइमिंग। हर बात हर जिद संजू अपनी मनवाने लगा था। आखिर वो 10वी में फ़ैल हो गया ,,, दोनों माता पिता को बड़ा सदमा लगा। इनकी परवरिश कमी नहीं छोड़ी फिर यह सिला दिया ।
यारी दोस्ती ऐसे अमीर लोगो की, बिगड़ी औलादो से रखी हुई थी ,, उनमे से कुछ नशे के भी आदी थे। संजू ने एक गर्लफ्रेंड भी बना रखी थी ,, ये मम्मी को पता था पापा को नहीं। कितना फर्क था मेरी और मेरे पिता की परवरिश में ,,, आज समझ आता है पिता सही थे। इंसान को अक्सर 40 साल के बाद यही समझ आता है मेरे पिता हमेशा सही थे।
कल संजू ने उषा देवी से और हंसराज से एक लाख मांगे ,, मम्मी पापा मुझे बाइक और लैपटॉप लेना है। अगर दिलवा सकते हो तो ठीक वरना में नहीं पढ़ने वाला। "हमारे लिए नहीं पढ़ रहा , इसमें तुम्हारा ही फायदा है " हंसराज बोलै। "अपने पापा से जुबान लड़ाता है शर्म आनी चाहिए तुझे " मम्मी तुम कौन होती हो बीच में बोलने वाली " आप लोगो ने किया ही क्या है मेरे लिए ? ये मत लो,, वो मत लो। अगर पैसे नहीं दोगे मेरा आप से कोई रिश्ता नहीं। शब्द सुनते ही उषा के हाथ पैर ठन्डे हो गए ,, माथे पर पसीने की लकीरे उकेर गयी। बेहोश हो कर नीचे गिर ही जाती अगर हंसराज बाँहों में नहीं थामते फटाफट उषा को सिटी अस्पताल ले आये ,, जहाँ मोत और जिंदगी के बीच झूल रही थी। "अगर तुम्हे कुछ हो गया उषा में भी जीकर क्या करूँगा "
"पापा पापा मम्मी को होश आ गया " आवाज सुनकर हंसराज की तन्द्रा भंग हुई। हंसराज की जान में जान आयी।
"डॉक्टर साब ?" अब उषा जी खतरे से बाहर है ,, इनका बड़ा ध्यान रखना पड़ेगा। तीनो ने एक साथ हामी भरी। एक सुकून भरी मुस्कान थी ,, "मुझे माफ़ करदो " संजू ने रोते हुए कहा। पापा ने दोनों बचो को गले लगा लिया। "पापा आज से जो आप कहोगे हम वही करेंगे दोनों बच्चों ने कहा " आज हंसराज को भी गर्व होने लगा परवरिश पर। तभी शंकर दयाल और सुमित्रा देवी भी पहुँच आशीर्वाद देने। सारे हालत बच्चों ने बयान कर दिए। "माँ, बाबूजी जीवन के मोड़ पर बहुत अकेला महसूस करता हूँ ,,, आप लोगों की बहुत याद आती है,, मुझे आपकी जरुरत है ,, आप यहाँ क्यों नहीं आ जाते हमारे पास। " फफक फफक कर रोने लगे हंस राज ,, जो अभी तक बच्चो के सामने मजबूत बने हुए थे ,, माता पिता के सामने बच्चों की भांति रो पड़े। औरत आसानी से रोकर गम हल्का कर लेती है ,, लेकिन मर्द को रोना शोभा नहीं देता , यही सोच कर रो भी नहीं पाता। आज हंसराज को भी पिता ने पहली बार गले लगाकर सम्बल दिया। मन के बादल झमाझम बरस गए। ठीक है बेटा अब हम साथ में रहेंगे ,, आंसू पोछते हुए हंसराज के शंकरदयाल बोलै ।
Friday, September 20, 2019
असली पूजा
ये लड़की कितनी नास्तिक है ...हर रोज मंदिर के सामने से गुजरेगी मगर अंदर आकर आरती में शामिल होना तो दूर, भगवान की मूर्ति ...

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पूरा नाम - भगवतीचरण वर्मा जन्म - 30 अगस्त, 1903 उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश मृत्यु - 5 अक्टूबर, 1981 कर्म भूमि - लखनऊ कर्म-क्षेत्र - ...
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सच्चा हिरा सायंकाल का समय था सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई और अपना अपना मटका भरकर बतयाने...