जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।
जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।" ये जनरल टिकट है। अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया। पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।
सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे।
बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे।
लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे।
" साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।"
टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी। ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।"
इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।
दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे ऐसे बैठे थे ,मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो।
कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए?
क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं।
आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा।
" मगर मुन्ने के कम करना...."" और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-
" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-"
इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।"
उसकी आँख फिर छलक पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।
(विनम्र प्रार्थना है जो भी इस कहानी को पढ़ चूका है उसे इस घटना से शायद ही इत्तिफ़ाक़ हो पर अगर ये कहानी शेयर करे ,कॉपी पेस्ट करे ,पर रुकने न दे शायद रेल मंत्रालय जनरल बोगी की भी परिस्थितियों को समझ सके। उसमे सफर करने वाला एक गरीब तबका है जिसका शोषण चिर कालीन से होता आया है।
एक कोशिश परिवर्तनकीओर
Wednesday, September 18, 2019
असली पूजा
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