Wednesday, September 25, 2019
वाह मोबाइल, आह मोबाइल
आज मोबाइल फोन के बिना हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते। उसका कारण है हमारी आधुनिक ज़रूरतों के हिसाब से इसके बेतहाशा फायदे और उपयोग। वो ज़माना चला गया, जब मोबाइल फोन केवल कॉलिंग के लिए होता था। आज यदि हमारे पास इंटरनेट कनेक्शन के साथ स्मॉर्ट मोबाइल फोन है तो यह समझ लीजिए कि हम अपने 90 से 95 प्रतिशत काम घर बैठे कर सकते हैं। जैसे: शॉपिंग, बैंकिंग, सभी तरह के बिल पे करना, ऑन लाइन बिजनेस, वीडियो कान्फ्रेन्सिंग, पंसदीदा मूवी देखना आदि। साथ ही, संकट की स्थिति में महिलाओं एवं बच्चों के लिए यह बहुत उपयोगी है। वास्तव में, आज स्मॉर्ट मोबाइल फोन (विद इंटरनेट) हमारे लिए लाइफ-लाइन बन गया है, जिसके फायदों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
कहते हैं ना कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं। यानि अच्छाई के साथ बुराई और उजाले के साथ अंधेरा। उसी तरह मोबाइल फोन के नकारात्मक पहलुओं की फेहरिस्त भी कोई छोटी नहीं है, लेकिन यहां हम केवल इस हरफनमौला मोबाइल फोन से, खासकर छोटे बच्चों को होने वाले नुकसान व खतरों की ही बात करेंगे। जिनमें सबसे ऊपर है, इससे निकलने वाला रेडिएशन। जी हां, एक रिसर्च के अनुसार, सेलफोन से निकलने वाले रेडिएशन से कैंसर तक होने की संभावना भी रहती है (हालांकि अभी भी इस पर रिसर्च जारी हैं)। आज लगभग एक साल का शिशु भी मोबाइल से पहले तो खिलौना समझकर खेलता है, लेकिन धीरे-धीरे उस छोटे बच्चे को मोबाइल की ऐसी लत पड़ती है कि वह ज़िंदगी भर इसे नहीं छोड़ पाता। छोटे बच्चों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है इसीलिए रेडिएशन सहित मोबाइल फोन के जितने भी नुकसान हैं, उनसे बच्चों को सुरक्षित रख पाना, बड़े व्यक्तियों की तुलना में ज़्यादा मुश्किल हो जाता है। बच्चे यदि दिन में बहुत थोड़े समय के लिए यूज़ कर लेते हैं तो फिर भी ठीक है, लेकिन यदि उन्हें लंबे समय तक मोबाइल यूज़ करने की लत पड़ चुकी है तो इस स्थिति को गंभीर माना जाना चाहिए।
यह देखा जा रहा है कि मोबाइल फोन का अधिक यूज़ करने से छोटे बच्चों की आंखे खराब होना, पढ़ाई में मन न लगना तथा शारीरिक विकास प्रभावित होने से लेकर एंज़ाइटी, हाइपरएक्टीविटी व डिप्रेशन जैसी बड़ी बीमारियां तक पनप रही हैं। मोबाइल की लत में पड़कर बच्चे खाना-पीना तक भूल जाते हैं। उनमें चिड़चिड़ापन एवं सिरदर्द रहने की भी शिकायतें मिलती हैं। हाल ही में, साढ़े तीन साल से लेकर आठ साल तक के 9 बच्चों को मोबाइल में वीडियो गेम खेलने एवं सेल्फी लेने के दौरान डेंटल इंज़री का शिकार होने पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
मनोचिकित्सकों के अनुसार, जिन बच्चों को मोबाइल फोन की लत पड़ चुकी है, उनके लिए यह जानलेवा तक भी हो सकता है। मोबाइल के कारण, बच्चों का बचपन से कनेक्शन कट रहा है और इंटरनेट-एडिक्शन के परिणामस्वरूप वे ‘समय से पहले’ बड़े हो रहे हैं। उनमें हिंसा की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है, जिसकी अति होने पर वे जानलेवा कदम तक उठा सकते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चीन में ऑनलाईन गेमिंग के दौरान हार से बचने के लिए बच्चे डायपर्स का प्रयोग करते हैं, ताकि बीच में टॉयलेट न जाना पड़े। ऐसे इंटरनेट-एडिक्टिड बच्चों को सुधारने के लिए वहां उनको विशेष कैम्पों में भी रखा जा रहा है। भविष्य में कहीं यह स्थिति हमारे देश में तो नहीं आने वाली ?
यह स्थिति निश्चित रूप से हम सभी के लिए चिंता का विषय ज़रूर है, लेकिन हमें घबराने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। क्योंकि यदि बच्चों को मोबाइल फोन के खतरों की जानकारी देते हुए उन्हें कुछ सावधानियों एवं सख्ती के साथ निश्चित अवधि हेतु मोबाइल फोन का यूज़ करने के लिए आगाह किया जाए तो उन्हें मोबाइल फोन के खतरों से काफी हद तक बचाया जा सकता है। सबसे पहले, छोटे बच्चों के हाथों में कम से कम समय के लिए मोबाइल फोन दिया जाए तथा उनके मनोरंजन के लिए टी.वी आदि अन्य विकल्पों का सहारा लिया जाए। बच्चों को एक बार में 30 मिनट से अधिक समय तक मोबाइल यूज़ नहीं करने देना चाहिए। बच्चे मोबाइल फोन को कान से लगाकर न सुनें, इसके लिए हैंड्स-फ्री का प्रयोग करना चाहिए। शिशुओं/बच्चों को कठोर सुपरविज़न के तहत ही मोबाइल फोन का यूज़ करने देना चाहिए। छोटे बच्चों को इंटरनेट वाले स्मॉर्ट मोबाइल फोन देने से बचना चाहिए, यदि संभव हो तो उन्हें साधारण मोबाइल फोन दिए जाएं। उनके मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का टाइम कम से कम कर देना चाहिए। सोते समय मोबाइल फोन को ऑफ कर दें अथवा बिस्तर से सदैव दूर ही रखें।
अतः हमें मानना होगा कि यदि मोबाइल फोन का सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो यह किसी वरदान से कम नहीं, लेकिन यदि इसका अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो यह बीमारियों का घर भी है। समझदारी इसमें है कि हम मोबाइल फोन के फायदों का आनंद लेते हुए इसके साइड-इफैक्ट्स से स्वयं भी बचें
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