Tuesday, December 31, 2019

असली पूजा





ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति  के  आगे हाथ  तक  नहीं  जोड़ेगी , मंदिर  के  सामने  से  गुजर कर  कोचिंग  जाती  नेहा  को देख कर  लीला  ने  मुंह बिचकाकर  कहा  तो  पुष्पा  ने  भी  हाँ  में  हाँ  मिलाई -सही  कह  रही  हो  भाभी, ऐसा  भी  क्या  घमंड  कि  जो भगवान   के  आगे  भी  सर  न  झुका  सके. ....यह  लीला और  पुष्पा  के  दिनचर्या  का हिस्सा  था  रोज  शाम  को मंदिर  जाना  वहीं  से  अपनी कोचिंग  क्लास  पढ़ने  के लिए  जाने  वाली  नेहा  पर फिकरे  कसना  और  गप्पे लादकर  घर  वापस  आ जाना ..



पर  आज  की  शाम  रोज  की तरह  नहीं  थी  . आज मंदिर प्रांगण  में  कहीं  से  कोई पगली  आकर  दो  घंटे  से पड़ी  थी  उसके  बाल  बिखरे हुए  थे, रूखा  सा  बदन, बेजान  चेहरा  और  भूख  से सूखी  मरी  काया  वाली 'पगली'  की  प्रसव  पीड़ा उसकी  दीनता  को  और दयनीय  बना  रही  थी  .
कोई  भी  उसे  सहारा  देना तो  दूर, पर  उसके  पास  तक  जाने  में  संकोच  महसूस  कर  रहा  था . आते जाते  सब  लोग  उसे  घृणित नजरों  से  देख  रहे थे ... लीला , पुष्पा  और  उनकी सहेलियों  को  चर्चा  का  एक नया  विषय  मिल  गया था .... अब  क्या  होगा  दीदी...ये पगली  का  प्रसव  तो  लगता है  मंदिर  के  प्रांगण  में  ही  हो जायेगा"  लीला  ने  कथित चिंता  व्यक्त  की ...
"होगा  क्या, ऐसे  में  तो  मंदिर  को  सूतक  लग जायेगा  पंडित  जी  फिर  कुछ  विशेष  अनुष्ठान  करके इस  स्थान  को  पवित्र  करेंगे  पुष्पा  ने  अपना  अनुभव बघारा ...
तभी  वहां  से  नेहा  गुजरी ...
पगली  को  देखकर  उसकी प्रतिकिया  क्या  होगी, ये जानने  के  लिए  व्याकुल लीला , पुष्पा  और  उसकी सहेलियों  ने  उसके  हाव  भाव  पर  गौर  करना  शुरू किया  नेहा  एक  क्षण  को ठिठकी, फिर  कुछ  सोचकर अपने  बैग  से  फ़ोन  निकाल कर  कहीं  पर  कॉल  किया  फिर  पास  की  एक  दुकान  से  पानी  की  बोतल खरीदकर, पगली  के  पास जाकर  धीरे  धीरे  उसके  मुँह में  पानी  डाला  .
नेहा  ने  अपना  दुपट्टा निकालकर  पगली  के चीथड़ों  से  लिपटे  अर्धनग्न बदन  पर  ओढ़ा  दिया  इतने में  साइरन  बजाती  हुई  एक एम्बुलेंस  आई . नेहा  ने एम्बुलेंस  के  कर्मचारियों  की सहायता  से  पगली  को गाड़ी  में  बिठाया  और  उसे लेकर  सरकारी  नर्सिंग  होम की  ऒर  चल  दी ..
जाने  से  पहले  उसने  लीला और  पुष्पा  को  ऐसे  देखा मानो  वो  उनसे  पूछ  रही  हो, "मूर्ति  की  सेवा  और  उस  मूर्ति  को  साकार  करने वाले  इंसान  की  सेवा  में  से ज्यादा  जरूरी  क्या है.....

ईश्वर  का  नाम  दिन  रात  लो  और  मजबूर  बेहसहारा जरूरत  मंद  को  अनदेखा कर  दो ... इससे  क्या  ईश्वर खुश  हो  जाएंगे ...
नहीं  मित्रों  कभी  नहीं
याद  रखिए  इंसानियत पहला  धर्म  इंसान  का  फिर पन्ना  खुलता  है  गीता  या कुरान  का ...किसी  जरूरतमंद  की  मदद  करके देखिए  यकीन  मानिए  दिल को  सुकून  मिलता  है  और ऐसे  कर्मो  से  ईश्वर  अपने भक्तों  से  खुश  भी  होते  है और  मित्रों  यही  होती  है असली  पूजा ...




इतने सारे सपने





फ़ुर्सत में था ,
सोचा चलो आज थोड़ी सी जिंदगी सुलझा लूँ ।
अलमारी खोली तो ढ़ेर सारे सपनें नीचे गिर गये ,
ना जाने कब से रखे थे वहाँ ,
बेतरतीब , मुड़े ,तुड़े , ठूसे हुए , थोड़ी सी जगह में , इतने सारे।
पर शुक्र था ,
खोया नहीं था एक भी ,



उठाया तो पाया , ज्यादातर तो टूट चुके थे ,
जो बचे थे ,वो शायद आज के समय के हिसाब से पुराने हो गये थे ।
आवाज आयी ,फेंक क्यों नहीं देते हो इन सब को ,
कुछ काम के तो हैं नहीं , बिना बात जगह घेर रखी हैं ।
कितना वक्त लगाया था मैंने इन सब को बुनने में ,
पल - पल , क्षण -क्षण , कितने लोग , कितनी ख़्वाहिशें ,
कितनी मजबूरियां , कितनी रातेँ , कितने दिन ,
तब जाकर इकट्ठे कर पाया था , इतने सारे सपने ।
गर बेचने भी निकलूँ तो शायद कोई ख़रीदार न मिले ,
गर मिल भी गया तो शायद इनका मूल्य ना चुका पाये ।
जिनके साथ मिलकर बुने थे , उन्हें भी लौटा नहीं सकता ,
और सपनों को तोड़ देना मेरी फितरत में नहीं ।
फिर से बटोर कर , सहेजकर मैं वापिस उन्हें अलमारी में रख देता हूं ,
जिंदगी पहले से कुछ कम उलझी हुई प्रतीत होती है ।



Monday, December 30, 2019

प्यार






इन 60-65 साल के अंकल आंटी का झगड़ा ख़त्म ही नहीं होता.....
एक बार  मैंने सोचा अंकल और आंटी से बात करू क्यों लड़ते हैं, हर वक़्त आख़िर बात क्या है.....
 फिर सोचा मुझे क्या मैं तो यहाँ दो दिन के लिए आया हूँ .....
मगर थोड़ी देर बाद आंटी की जोर-जोर से बड़बड़ाने की आवाज़े आयीं तो मुझसे रहा नहीं गया .....
 ग्राउंड फ्लोर पर गया मैं तो देखा अंकल हाथ में वाइपर और पोछा लिए खड़े थे .....
मुझे देखकर मुस्कराये  और फिर फर्श की सफाई में लग गए.....
अंदर किचन से आंटी के बड़बड़ाने की आवाज़े अब भी रही थी.....
कितनी बार मना किया है .....
 फर्श की धुलाई मत करो.....
पर नहीं मानता बुड्ढा.....
मैंने पूछा अंकल क्यों करते हैं आप फर्श की धुलाई जब आंटी मना करती हैं तो".......
अंकल बोले "बेटा, फर्श धोने का शौक मुझे नहीं, इसे है। मैं तो इसीलिए करता हूं ताकि इसे न करना पड़े सुबह उठकर ही फर्श धोने लगेगी इसलिए इसके उठने से पहले ही मैं धो देता हूं.....
क्या..... मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।



अंदर जाकर देखा आंटी किचन में थीं। "अब इस उम्र में बुढ़ऊ की हड्डी पसली कुछ हो गई तो क्या होगा। मुझसे नहीं होगी खिदमत।" आंटी झुंझला रही थीं। पराठे बना कर आंटी सिल बट्टे से चटनी पीसने लगीं.......
मैंने पूछा "आंटी मिक्सी है तो फिर....." "तेरे अंकल को बड़ी पसंद है सिल बट्टे की पिसी चटनी।बड़े शौक से खाते हैं।दिखाते यही हैं कि उन्हें पसंद नहीं।"
उधर अंकल भी नहा धो कर फ़्री हो गए थे। उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी,"बेटा, इस बुढ़िया से पूछ रोज़ाना मेरे सैंडल कहां छिपा देती है, मैं ढूंढ़ता हूं और इसको बड़ा मज़ा आता है मुझे ऐसे देखकर।"
मैंने आंटी को देखा वो कप में चाय उड़ेलते हुए मुस्कुराईं और बोलीं, "हां मैं ही छिपाती हूं सैंडल, ताकि सर्दी में ये जूते पहनकर ही बाहर जाएं, देखा नहीं कैसे उंगलियां सूज जाती हैं इनकी।"
हम तीनों साथ में नाश्ता करने लगे ....... इस नोक झोंक के पीछे छिपे प्यार को देख कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था। नाश्ते के दौरान भी बहस चली दोनों की।
अंकल बोले ...."थैला दे दो मुझे , सब्ज़ी ले आऊं"......



"नहीं  कोई ज़रूरत नहीं, थैला भर भर कर सड़ी गली सब्ज़ी लाने की"। आंटी  गुस्से से बोलीं। अब क्या हुआ आंटी  ....... मैंने आंटी की ओर सवालिया नज़रों से देखा, और उनके पीछे-पीछे  किचन में आ गया ।....
"दो कदम चलने मे सांस फूल जाती है इनकी,थैला भर सब्ज़ी लाने की जान है क्या इनमें.....बहादुर से कह दिया है वह भेज देगा सब्ज़ी वाले को।"
"मॉर्निंग वॉक का शौक चर्राया है बुढ़‌ऊ को"......तू पूछ उनसे क्यों नहीं ले जाते मुझे भी साथ में।चुपके से चोरों की तरह क्यों निकल जाते हैं...."
 आंटी ने जोर से मुझसे कहा।
"मुझे मज़ा आता है इसीलिए जाता हूं अकेले।".....अंकल ने भी जोर से जवाब दिया।
अब मैं ड्राइंगरूम मे था,अंकल धीरे से बोले .....,रात में नींद नहीं आती तेरी आंटी को , सुबह ही आंख लगती है कैसे जगा दूं चैन की गहरी नींद से इ।" इसीलिए चला जाता हूं गेट बाहर से बंद कर के।".......
इस नोक झोंक पर मुस्कराता मैं वापिस फर्स्ट फ्लोर पे आ गया.....कुछ देर बाद बालकनी से देखा अंकल आंटी के पीछे दौड़ रहे हैं।..... "अरे कहां भागी जा रही हो मेरे स्कूटर की चाबी ले कर..... इधर दो चाबी।"
"हां नज़र आता नहीं पर स्कूटर चलाएंगे। कोई ज़रूरत नहीं। ओला कैब कर लेंगे हम।" आंटी चिल्ला रही थीं।
"ओला कैब वाला किडनैप कर लेगा तुझे बुढ़िया।"।
"हां कर ले, तुम्हें तो सुकून हो जाएगा।"
अंकल और आंटी की ये  बेहिसाब नोंक-झोंक तो कभी खत्म नहीं होने वाली थी..... मगर मैंने आज समझा था कि  इस तकरार के पीछे छिपी थी इनकी एक दूसरे के लिए बेशुमार मोहब्बत और फ़िक्र......
मैंने आज समझा था कि प्यार वो नहीं जो कोई "कर" रहा है ...... प्यार वो है जो कोई "निभा" रहा है .....




जमाना बदल गया. है




रोज तारीख बदलती. है,
रोज. दिन. बदलते. हैं....
रोज. अपनी. उमर. भी बदलती. है.....
रोज. समय. भी बदलता. है...
हमारे नजरिये. भी. वक्त. के साथ. बदलते. हैं.....
बस एक. ही. चीज. है. जो नहीं. बदलती...
और वो हैं "हम खुद"....
और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........
किसी शायर ने खूब कहा है,,

रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,

हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,

ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,

बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,

क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,

जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,



असली पूजा

ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति ...