Tuesday, December 31, 2019

असली पूजा





ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति  के  आगे हाथ  तक  नहीं  जोड़ेगी , मंदिर  के  सामने  से  गुजर कर  कोचिंग  जाती  नेहा  को देख कर  लीला  ने  मुंह बिचकाकर  कहा  तो  पुष्पा  ने  भी  हाँ  में  हाँ  मिलाई -सही  कह  रही  हो  भाभी, ऐसा  भी  क्या  घमंड  कि  जो भगवान   के  आगे  भी  सर  न  झुका  सके. ....यह  लीला और  पुष्पा  के  दिनचर्या  का हिस्सा  था  रोज  शाम  को मंदिर  जाना  वहीं  से  अपनी कोचिंग  क्लास  पढ़ने  के लिए  जाने  वाली  नेहा  पर फिकरे  कसना  और  गप्पे लादकर  घर  वापस  आ जाना ..



पर  आज  की  शाम  रोज  की तरह  नहीं  थी  . आज मंदिर प्रांगण  में  कहीं  से  कोई पगली  आकर  दो  घंटे  से पड़ी  थी  उसके  बाल  बिखरे हुए  थे, रूखा  सा  बदन, बेजान  चेहरा  और  भूख  से सूखी  मरी  काया  वाली 'पगली'  की  प्रसव  पीड़ा उसकी  दीनता  को  और दयनीय  बना  रही  थी  .
कोई  भी  उसे  सहारा  देना तो  दूर, पर  उसके  पास  तक  जाने  में  संकोच  महसूस  कर  रहा  था . आते जाते  सब  लोग  उसे  घृणित नजरों  से  देख  रहे थे ... लीला , पुष्पा  और  उनकी सहेलियों  को  चर्चा  का  एक नया  विषय  मिल  गया था .... अब  क्या  होगा  दीदी...ये पगली  का  प्रसव  तो  लगता है  मंदिर  के  प्रांगण  में  ही  हो जायेगा"  लीला  ने  कथित चिंता  व्यक्त  की ...
"होगा  क्या, ऐसे  में  तो  मंदिर  को  सूतक  लग जायेगा  पंडित  जी  फिर  कुछ  विशेष  अनुष्ठान  करके इस  स्थान  को  पवित्र  करेंगे  पुष्पा  ने  अपना  अनुभव बघारा ...
तभी  वहां  से  नेहा  गुजरी ...
पगली  को  देखकर  उसकी प्रतिकिया  क्या  होगी, ये जानने  के  लिए  व्याकुल लीला , पुष्पा  और  उसकी सहेलियों  ने  उसके  हाव  भाव  पर  गौर  करना  शुरू किया  नेहा  एक  क्षण  को ठिठकी, फिर  कुछ  सोचकर अपने  बैग  से  फ़ोन  निकाल कर  कहीं  पर  कॉल  किया  फिर  पास  की  एक  दुकान  से  पानी  की  बोतल खरीदकर, पगली  के  पास जाकर  धीरे  धीरे  उसके  मुँह में  पानी  डाला  .
नेहा  ने  अपना  दुपट्टा निकालकर  पगली  के चीथड़ों  से  लिपटे  अर्धनग्न बदन  पर  ओढ़ा  दिया  इतने में  साइरन  बजाती  हुई  एक एम्बुलेंस  आई . नेहा  ने एम्बुलेंस  के  कर्मचारियों  की सहायता  से  पगली  को गाड़ी  में  बिठाया  और  उसे लेकर  सरकारी  नर्सिंग  होम की  ऒर  चल  दी ..
जाने  से  पहले  उसने  लीला और  पुष्पा  को  ऐसे  देखा मानो  वो  उनसे  पूछ  रही  हो, "मूर्ति  की  सेवा  और  उस  मूर्ति  को  साकार  करने वाले  इंसान  की  सेवा  में  से ज्यादा  जरूरी  क्या है.....

ईश्वर  का  नाम  दिन  रात  लो  और  मजबूर  बेहसहारा जरूरत  मंद  को  अनदेखा कर  दो ... इससे  क्या  ईश्वर खुश  हो  जाएंगे ...
नहीं  मित्रों  कभी  नहीं
याद  रखिए  इंसानियत पहला  धर्म  इंसान  का  फिर पन्ना  खुलता  है  गीता  या कुरान  का ...किसी  जरूरतमंद  की  मदद  करके देखिए  यकीन  मानिए  दिल को  सुकून  मिलता  है  और ऐसे  कर्मो  से  ईश्वर  अपने भक्तों  से  खुश  भी  होते  है और  मित्रों  यही  होती  है असली  पूजा ...




इतने सारे सपने





फ़ुर्सत में था ,
सोचा चलो आज थोड़ी सी जिंदगी सुलझा लूँ ।
अलमारी खोली तो ढ़ेर सारे सपनें नीचे गिर गये ,
ना जाने कब से रखे थे वहाँ ,
बेतरतीब , मुड़े ,तुड़े , ठूसे हुए , थोड़ी सी जगह में , इतने सारे।
पर शुक्र था ,
खोया नहीं था एक भी ,



उठाया तो पाया , ज्यादातर तो टूट चुके थे ,
जो बचे थे ,वो शायद आज के समय के हिसाब से पुराने हो गये थे ।
आवाज आयी ,फेंक क्यों नहीं देते हो इन सब को ,
कुछ काम के तो हैं नहीं , बिना बात जगह घेर रखी हैं ।
कितना वक्त लगाया था मैंने इन सब को बुनने में ,
पल - पल , क्षण -क्षण , कितने लोग , कितनी ख़्वाहिशें ,
कितनी मजबूरियां , कितनी रातेँ , कितने दिन ,
तब जाकर इकट्ठे कर पाया था , इतने सारे सपने ।
गर बेचने भी निकलूँ तो शायद कोई ख़रीदार न मिले ,
गर मिल भी गया तो शायद इनका मूल्य ना चुका पाये ।
जिनके साथ मिलकर बुने थे , उन्हें भी लौटा नहीं सकता ,
और सपनों को तोड़ देना मेरी फितरत में नहीं ।
फिर से बटोर कर , सहेजकर मैं वापिस उन्हें अलमारी में रख देता हूं ,
जिंदगी पहले से कुछ कम उलझी हुई प्रतीत होती है ।



Monday, December 30, 2019

प्यार






इन 60-65 साल के अंकल आंटी का झगड़ा ख़त्म ही नहीं होता.....
एक बार  मैंने सोचा अंकल और आंटी से बात करू क्यों लड़ते हैं, हर वक़्त आख़िर बात क्या है.....
 फिर सोचा मुझे क्या मैं तो यहाँ दो दिन के लिए आया हूँ .....
मगर थोड़ी देर बाद आंटी की जोर-जोर से बड़बड़ाने की आवाज़े आयीं तो मुझसे रहा नहीं गया .....
 ग्राउंड फ्लोर पर गया मैं तो देखा अंकल हाथ में वाइपर और पोछा लिए खड़े थे .....
मुझे देखकर मुस्कराये  और फिर फर्श की सफाई में लग गए.....
अंदर किचन से आंटी के बड़बड़ाने की आवाज़े अब भी रही थी.....
कितनी बार मना किया है .....
 फर्श की धुलाई मत करो.....
पर नहीं मानता बुड्ढा.....
मैंने पूछा अंकल क्यों करते हैं आप फर्श की धुलाई जब आंटी मना करती हैं तो".......
अंकल बोले "बेटा, फर्श धोने का शौक मुझे नहीं, इसे है। मैं तो इसीलिए करता हूं ताकि इसे न करना पड़े सुबह उठकर ही फर्श धोने लगेगी इसलिए इसके उठने से पहले ही मैं धो देता हूं.....
क्या..... मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।



अंदर जाकर देखा आंटी किचन में थीं। "अब इस उम्र में बुढ़ऊ की हड्डी पसली कुछ हो गई तो क्या होगा। मुझसे नहीं होगी खिदमत।" आंटी झुंझला रही थीं। पराठे बना कर आंटी सिल बट्टे से चटनी पीसने लगीं.......
मैंने पूछा "आंटी मिक्सी है तो फिर....." "तेरे अंकल को बड़ी पसंद है सिल बट्टे की पिसी चटनी।बड़े शौक से खाते हैं।दिखाते यही हैं कि उन्हें पसंद नहीं।"
उधर अंकल भी नहा धो कर फ़्री हो गए थे। उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी,"बेटा, इस बुढ़िया से पूछ रोज़ाना मेरे सैंडल कहां छिपा देती है, मैं ढूंढ़ता हूं और इसको बड़ा मज़ा आता है मुझे ऐसे देखकर।"
मैंने आंटी को देखा वो कप में चाय उड़ेलते हुए मुस्कुराईं और बोलीं, "हां मैं ही छिपाती हूं सैंडल, ताकि सर्दी में ये जूते पहनकर ही बाहर जाएं, देखा नहीं कैसे उंगलियां सूज जाती हैं इनकी।"
हम तीनों साथ में नाश्ता करने लगे ....... इस नोक झोंक के पीछे छिपे प्यार को देख कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था। नाश्ते के दौरान भी बहस चली दोनों की।
अंकल बोले ...."थैला दे दो मुझे , सब्ज़ी ले आऊं"......



"नहीं  कोई ज़रूरत नहीं, थैला भर भर कर सड़ी गली सब्ज़ी लाने की"। आंटी  गुस्से से बोलीं। अब क्या हुआ आंटी  ....... मैंने आंटी की ओर सवालिया नज़रों से देखा, और उनके पीछे-पीछे  किचन में आ गया ।....
"दो कदम चलने मे सांस फूल जाती है इनकी,थैला भर सब्ज़ी लाने की जान है क्या इनमें.....बहादुर से कह दिया है वह भेज देगा सब्ज़ी वाले को।"
"मॉर्निंग वॉक का शौक चर्राया है बुढ़‌ऊ को"......तू पूछ उनसे क्यों नहीं ले जाते मुझे भी साथ में।चुपके से चोरों की तरह क्यों निकल जाते हैं...."
 आंटी ने जोर से मुझसे कहा।
"मुझे मज़ा आता है इसीलिए जाता हूं अकेले।".....अंकल ने भी जोर से जवाब दिया।
अब मैं ड्राइंगरूम मे था,अंकल धीरे से बोले .....,रात में नींद नहीं आती तेरी आंटी को , सुबह ही आंख लगती है कैसे जगा दूं चैन की गहरी नींद से इ।" इसीलिए चला जाता हूं गेट बाहर से बंद कर के।".......
इस नोक झोंक पर मुस्कराता मैं वापिस फर्स्ट फ्लोर पे आ गया.....कुछ देर बाद बालकनी से देखा अंकल आंटी के पीछे दौड़ रहे हैं।..... "अरे कहां भागी जा रही हो मेरे स्कूटर की चाबी ले कर..... इधर दो चाबी।"
"हां नज़र आता नहीं पर स्कूटर चलाएंगे। कोई ज़रूरत नहीं। ओला कैब कर लेंगे हम।" आंटी चिल्ला रही थीं।
"ओला कैब वाला किडनैप कर लेगा तुझे बुढ़िया।"।
"हां कर ले, तुम्हें तो सुकून हो जाएगा।"
अंकल और आंटी की ये  बेहिसाब नोंक-झोंक तो कभी खत्म नहीं होने वाली थी..... मगर मैंने आज समझा था कि  इस तकरार के पीछे छिपी थी इनकी एक दूसरे के लिए बेशुमार मोहब्बत और फ़िक्र......
मैंने आज समझा था कि प्यार वो नहीं जो कोई "कर" रहा है ...... प्यार वो है जो कोई "निभा" रहा है .....




जमाना बदल गया. है




रोज तारीख बदलती. है,
रोज. दिन. बदलते. हैं....
रोज. अपनी. उमर. भी बदलती. है.....
रोज. समय. भी बदलता. है...
हमारे नजरिये. भी. वक्त. के साथ. बदलते. हैं.....
बस एक. ही. चीज. है. जो नहीं. बदलती...
और वो हैं "हम खुद"....
और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........
किसी शायर ने खूब कहा है,,

रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,

हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,

ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,

बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,

क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,

जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,



Sunday, October 6, 2019

पी. वी. सिंधु के प्रमुख रिकार्ड्स की सूची

पीवी सिंधु ओलिंपिक स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं, इसके अलावा वह पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बन गई हैं, जिन्होंने 2019 में बीडब्ल्यूएफ विश्व टूर फाइनल में स्वर्ण पदक जीता है. पीवी सिंधु की विश्व में सर्वोच्च रैंकिंग 2 रह चुकी है. वर्तमान में वह विश्व की नंबर 3 खिलाड़ी है.

पीवी सिंधु के बारे में व्यक्तिगत जानकारी :

पूरा नाम: पुसरला वेंकट सिंधु
पिता: पी. वी. रमना
माँ:  पी. विजया
जन्म तिथि और स्थान: 5 जुलाई 1995, हैदराबाद, तेलंगाना
ऊंचाई: 1.79 मीटर (5 फीट 10 इंच)
वजन:  60 किलो (132 पौंड)
सिंधु के शौक:  फिल्में देखना, योगा करना
शिक्षा: सेंट एन कॉलेज फॉर विमेन (मेहदीपट्टनम) से बी.कॉम; अब एमबीए कर रही है.
करियर की शुरुआत: 2011 से
कोच: पुलेला गोपीचंद
करियर रिकॉर्ड: 312 जीत, 129 हार
कैरियर टाइटल्स: 15
उच्चतम रैंकिंग: 2 (7 अप्रैल 2017)
वर्तमान रैंकिंग: 3 (20 अगस्त 2019)
कमाई: $ 8.5 मिलियन, सिंधु फोर्ब्स की "हाइएस्ट-पेड महिला एथलीट 2018" सूची में सातवें स्थान पर रहीं थीं.

पुरस्कार:

1. सिन्धु को 24 सितंबर 2013 में अर्जुन पुरस्कार मिला था.

2. उन्हें 2015 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

3. सिंधु को 29 अगस्त 2016 को भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

पीवी सिंधु तब मशहूर हुईं जब उन्होंने सितंबर 2012 में सिर्फ 17 साल की उम्र में BWF वर्ल्ड रैंकिंग के टॉप 20 में प्रवेश किया था.

पीवी सिंधु ने बैडमिंटन की दुनिया में चीनी खिलाड़ियों के वर्चस्व को तोड़ा है. उसने शीर्ष चीनी खिलाड़ियों को हराया है; विश्व चैम्पियनशिप 2019 और 2017 में चीन की चेन यूफेई को हराया था जबकि सिंधु ने विश्व चैम्पियनशिप 2015 में चीन की ली जुरेई को हराया था.

पी.वी. सिंधु द्वारा जीते गए पदकों की सूची :

1. ओलंपिक खेल:  2016 रियो डी जनेरियो ओलंपिक खेलों में रजत पदक

2. विश्व चैंपियनशिप

A. 2019 में स्वर्ण पदक (महिला एकल)

B.  2018 में रजत पदक (महिला एकल)

C. 2017 में रजत पदक (महिला एकल)

D. 2014 में कांस्य पदक (महिला एकल)

E. 2013 में कांस्य पदक (महिला एकल)

3. उबेर कप बैडमिंटन

A.  2014 नई दिल्ली में कांस्य पदक, (महिला टीम)

B.  2016 में कांस्य पदक, (महिला टीम)

4. एशियाई खेल

A. 2018 जकार्ता-पालमबांग (महिला एकल) में रजत पदक

B.  2014 इंचियोन (महिला टीम) में कांस्य पदक

5. राष्ट्रमंडल खेल

A.   2018 गोल्ड कोस्ट (मिश्रित टीम) में स्वर्ण पदक

B. 2018 गोल्ड कोस्ट (महिला एकल) में रजत पदक

C. 2014 ग्लासगो में कांस्य पदक (महिला एकल)

6. एशियाई चैंपियनशिप

A.  2014 में जिमचेन (महिला एकल) में कांस्य पदक

7. दक्षिण एशियाई खेल

A.  स्वर्ण पदक: 2016 में गुवाहाटी (महिला टीम)

B.  रजत पदक: 2016 में गुवाहाटी (महिला एकल)

8. राष्ट्रमंडल युवा खेल

A.  2011 में स्वर्ण पदक (लड़कियों का एकल)

9. एशियाई जूनियर चैंपियनशिप

A.  2012 में दक्षिण कोरिया (लड़कियों के एकल) में स्वर्ण पदक

B. 2011 लखनऊ (लड़कियों का एकल) में कांस्य पदक

C. 2011 में कांस्य पदक लखनऊ (मिश्रित टीम)

उपरोक्त पदकों के अलावा सिन्धु ने 3 Badminton World Federation (BWF) सुपरसीरीज खिताब जीते हैं जबकि 4 BWF सुपरसीरीज में उपविजेता रही है.

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि पीवी सिंधु भारत में बैडमिंटन सनसनी की तरह हैं. आने वाले वर्षों में हम महान बैडमिंटन खिलाड़ी के बारे में बहुत कुछ सुनेंगे.

Saturday, October 5, 2019

प्यार नहीं था तो क्या था

अगर मुझसे प्यार नहीं था तो क्यों आये थे मुझसे मिलने मेरी पसंद के कलर की शर्ट पहनके। नहीं था प्यार क्यों लाये थे साथ मेरे पसंद की चॉकलेट। नहीं था कुछ तो क्यों याद हैं तुम्हे आज भी मेरी एक -एक बात। मैं कब रूठी थी तुमसे, कब मुस्कुराई थी मैं, कब गुस्से करने का नाटक कर रही थी। क्या पहना था मैंने, मेरे खुले बाल, हाथों में पकड़ा चाबी का छल्ला। इतने सालों बाद भी तुम्हें कैसे याद हैं।
मैने बड़ी मुश्किल से माना था कि मेरा प्यार केवल एक तरफा था क्योंकि मुझे हमेशा से लगता था कि तुम भी करते हो मुझसे प्यार बस जताते नहीं। क्यों तुम सारा दिन मुझसे ही फोन पर बात करते थे जबकि कॉलेज में कुछ ही घँटे पहले मिले थे हम। क्यों हमेशा तेरे साथ वाली सीट खाली रहती थी जिस पर मेरे सिवा किसी ओर को नहीं बैठने देते थे।
तुमने तो मुझे छोड़ कर किसी ओर का हाथ थाम लिया था। और मैने अपनी चाहत को एक तरफा प्यार का नाम दे दिया था। बड़ी मुश्किल से सँभाला था खुद को जब तेरी शादी की खबर सुनी तुम्हारे ही मुँह से। उस ही दिन तुमसे दूरी बना ली थी। नहीं थी हिम्मत तुझे किसी ओर के साथ देखने की।
दिमाग ने कहा वो नहीं है तेरे लायक ,तेरे प्यार के काबिल भी नहीं है। पर दिल ने एक ना सुनी क्योंकि वो तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हें चाहता था बेइंतहा.....। लेकिन आज इतने सालों बाद तुमसे मिली तो लगा ही नहीं के हम बरसों बाद मिले है। वहीं तुम्हारी हंसी, वही नजरों से देखना मुझे,वहीं बिन कहे मेरी बात समझ जाना।
वहीं सारी हँसी ठिठोली, आज तुम्हारे साथ इतना हँसी मानो कई सालों की हँसी बंद हो कहीं मेरे अंदर। खुश थी आज बहुत मैं जैसे पहले रहती थी तुम्हारे साथ खुश मैं। पर ये क्या कह दिया तुमनें की आज भी तुमसे बात करना अच्छा लगता हैं जैसे पहले लगता था। कहाँ चली गयी थी तुम मुझे छोड़ के कितना याद किया तुम्हें मैंने।
ये सुन जब मैंने तुमसे कहा 'मैं तुमसे बहुत प्यार करती थी और मानती थी कि तुम खुद आके मुझे कहोगें की तुम भी मुझसे प्यार करते हो, लेकिन तुमनें तो किसी और का हाथ थाम लिया था।" तो क्या करती नहीं हुआ बर्दास्त तुम्हें किसी ओर का होता देख इसलिये दूर कर दिया खुद को तुमसे, पर तेरी यादों को आज भी खुद से दूर नहीं कर पायी"।
बोलो क्या कभी एक पल के लिए भी तुम्हें मुझसे प्यार नहीं हुआ। तो तुमने कहा-"मुझे तेरे साथ रहना अच्छा लगता था , तुमसे बात करना अच्छा लगता था,आज भी कोई नहीं है जिससे में इतनी बात करूं जितनी तुमसे करता था। पर यह प्यार था या नहीं मैं समझ ही नहीं पाया। पर तुझे बहुत याद करता था"। यह कह तुम चुप होगये। और मैं यही सोचती रही के मेरा दिल सही कहता था कि वो भी मुझसे प्यार करता है। मेरा प्यार एक तरफा नहीं था।
तभी एक आवाज कानों में पड़ती है "मम्मी खाना दो भूख लगी है"। और वो हकीकत की दुनिया में आ गई ।

भगवतीचरण वर्मा जी का जीवन परिचय -- Life introduction of Bhagwati Charan Varma

पूरा नाम  -    भगवतीचरण वर्मा
जन्म - 30 अगस्त, 1903 उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु - 5 अक्टूबर, 1981
कर्म भूमि - लखनऊ
कर्म-क्षेत्र -  साहित्यकार
मुख्य रचनाएँ  - 'चित्रलेखा', 'भूले बिसरे चित्र', 'सीधे सच्ची बातें', 'सबहि नचावत राम गुसाई', 'अज्ञात देश से आना', 'आज मानव का सुनहला प्रात है', 'मेरी कविताएँ', 'मेरी कहानियाँ', 'मोर्चाबन्दी', 'वसीयत'।
विषय - उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, पत्रकार।
भाषा -हिन्दी
विद्यालय  - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा -   बी.ए., एल.एल.बी.
पुरस्कार-उपाधि  -  साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण
प्रसिद्धि  - उपन्यासकार
नागरिकता -  भारतीय

भगवतीचरण वर्मा हिन्दी जगत के प्रमुख साहित्यकार है। इन्होंने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रमुख रूप से कार्य किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त, 1903 ई. में उन्नाव ज़िले, उत्तर प्रदेश के शफीपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बीच-बीच में इनके फ़िल्म तथा आकाशवाणी से भी इनके सम्बद्ध रहे हैं। बाद में यह स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर लखनऊ में बस गये। इन्हें राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त करायी गई। कोई उनसे सहमत हो या न हो, यह माने या न माने, कि वे मुख्यत: उपन्यासकार हैं और कविता से उनका लगाव छूट गया है। उनके अधिकांश भावक यह स्वीकार करेंगे की सचमुच ही कविता से वर्माजी का सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया है, या हो सकता है। उनकी आत्मा का सहज स्वर कविता का है, उनका व्यक्तित्व शायराना अल्हड़पन, रंगीनी और मस्ती का सुधरा-सँवारा हुआ रूप है। वे किसी 'वाद' विशेष की परिधि में बहुत दिनों तक गिरफ़्तार नहीं रहे। यों एक-एक करके प्राय: प्रत्येक 'वाद' को उन्होंने टटोला है, देखा है, समझने-अपनाने की चेष्टा की है, पर उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता, रूमानी बैचेनी, अल्हड़पन और मस्ती, हर बार उन्हें 'वादों' की दीवारें तोड़कर बाहर निकल आने के लिए प्रेरणा देती रही और प्रेरणा के साथ-साथ उसे कार्यान्वित करने की क्षमता और शक्ति भी मिलती रही।
     
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे, जो छायावादोत्तर हिन्दी साहित्य की एक प्रमुख विशेषता रही। एक के बाद एक 'वाद' को ठोक-बजाकर देखने के बाद ज्यों ही उन्हें विश्वास हुआ कि उसके साथ उनका सहज सम्बन्ध नहीं हो सकता, उसे छोड़कर गाते-झूमते, हँसते-हँसाते आगे बढ़े। अपने प्रति, अपने 'अहं' के प्रति उनका सहज अनुराग अक्षुण्ण बना रहा। अनेक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से घुमाता हुआ उनका 'अहं' उन्हें अपने सहजधर्म और सहजधर्म की खोज में जाने कहाँ-कहाँ ले गया। उनका साहित्यिक जीवन कविता से भी और छायावादी कविता से आरम्भ हुआ, पर न तो वे छायावादी काव्यानुभूति के अशरीरी आधारों के प्रति आकर्षित हुए, न उसकी अतिशय मृदुलता को ही कभी अपना सके। इसी प्रकार अन्य 'वादों' में भी कभी पूरी तरह और चिरकाल के लिए अपने को बाँध नहीं पाये। अपने 'अहं' के प्रति इतने ईमानदार सदैव रहे कि ज़बरन बँधने की कोशिश नहीं की। किसी दूसरे की मान्यताओं को बिना स्वयं उन पर विश्वास किये अपनी मान्यताएँ नहीं समझा। कहीं से विचार या दर्शन उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा कभी नहीं की।

कृतियाँ :

कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो 1956 ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए हैं, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। मानववादी दृष्टिकोण के तत्व, जिनके आधार पर प्रगतिवादी काव्यधारा जानी-पहचानी जाने लगी, 'भैंसागाड़ी' में भली-भाँति उभर कर सामने आये थे। उनका पहला कविता संग्रह 'मधुकण' के नाम से 1932 ई. में प्रकाशित हुआ। तदनन्तर दो और काव्य संग्रह 'प्रेम संगीत' और 'मानव' निकले। इन्हें किसी 'वाद' विशेष के अंतर्गत मानना ग़लत है। रूमानी मस्ती, नियतिवाद, प्रगतिवाद, अन्तत: मानववाद इनकी विशिष्टता है।

भगवती चरण वर्मा और हिन्दी साहित्य :

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ-साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे देश में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। भगवती चरण वर्मा जी प्रकाशित पुस्तकें नीचे श्रंखला में दी गई है।

उपन्यास :

पतन (1928),
चित्रलेखा (1934),
तीन वर्ष,
टेढे़-मेढे रास्ते (1946) - इसमें मार्क्सवाद की आलोचना की गई थी।
अपने खिलौने (1957),
भूले-बिसरे चित्र (1959),
वह फिर नहीं आई,
सामर्थ्य और सीमा (1962),
थके पाँव,
रेखा,
सीधी सच्ची बातें,
युवराज चूण्डा,
सबहिं नचावत राम गोसाईं, (1970), 
प्रश्न और मरीचिका, (1973), 
धुप्पल,
चाणक्य, 
क्या निराश हुआ जाए

कहानी-संग्रह :

मोर्चाबंदी

कविता-संग्रह :

मधुकण (1932), 
तदन्तर दो और काव्यसंग्रह- 'प्रेम-संगीत' और 'मानव' निकले।

नाटक :

वसीहत, 
रुपया तुम्हें खा गया

संस्मरण :

अतीत के गर्भ से

साहित्यालोचन :

साहित्य के सिद्घान्त, 
रुप

भगवती चरण वर्मा की प्रतिनिधि रचनाएँ :

स्मृतिकण, 
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें, 
आज शाम है बहुत उदास, 
आज मानव का, 
तुम सुधि बन-बनकर बार-बार, 
तुम मृगनयनी, 
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ, 
तुम अपनी हो, जग अपना है, 
देखो-सोचो-समझो, 
पतझड़ के पीले पत्तों ने, 
कल सहसा यह सन्देश मिला, 
संकोच-भार को सह न सका, 
बस इतना--अब चलना होगा, 
आज मानव का सुनहला प्रात है, 
हम दीवानों की क्या हस्ती, 
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम, 
अज्ञात देश से आना, 
बसन्तोत्सव, 
मानव, 
भैंसागाड़ी ।

चित्रलेखा :

चित्रलेखा न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है।

चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’’

टेढ़े-मेढ़े रास्ते :

टेढ़े मेढ़े रास्ते सन् 1948 में प्रकाशित उनका प्रथम वृहत उपन्यास था जिसे हिन्दी साहित्य के प्रथम राजनीतिक उपन्यास का दर्जा मिला। टेढ़े-मेढ़े रास्ते को उन्होंने अपनी प्रथम शुद्ध बौद्धिक गद्य-रचना माना है। इसमें मार्क्सवाद की आलोचना की गयी है। इसके जवाब में रांगेय राघव ने 'सीधा-सादा रास्ता' लिखी थी।

पुरस्कार :

भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

असली पूजा

ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति ...