Wednesday, June 26, 2019

सुखी आदमी के जूते

सुखी आदमी के जूते

एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दुख से छूटने का कोई उपाय बताइए।
शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दुखों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूंढना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।
गुरु ने कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुझे दुख से छूटने का उपाय बता दूंगा।
शिष्य चला गया। एक घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।
उसने कहा, कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूं।
वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, अब क्या कहूं भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं।
 ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ।
वह तीसरे घर गया, चैथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता।
पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता।
सैकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया। सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए।
शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया। न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते।
गुरु ने पूछा, लोग क्यों दुखी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?
उससे कहा, किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है।
आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है।

गुरु ने बताया, सुख का सूत्र है - दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखो।
 खुद में झांको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। 
जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है।

शिष्य बोला, महाराज, बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई?

गुरु ने कहा, वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तू हर्गिज नहीं मानता।
 जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, तो बात समझ में आ गई। 
अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।

जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो।

इन्वेस्टमेंट

इन्वेस्टमेंट


”श्वेता, दो दिनों से देख रही हूं, जिसे देखो बस तेरे गुणगान गाता है… तू है बड़ी लकी… तेरी फ़िक़्र तो ऐसे करते हैं, जैसे तू बहू नहीं, इस घर की बेटी हो.” निकिता के मुंह से अनायास निकले शब्दों पर श्वेता मुस्कुराकर बोली, “सच दीदी, शादी के पहले डर लगता था, ना जाने कैसा परिवार मिले, एडजस्टमेंट हो पाएगा या नहीं? पर अब ऐसा लगता है, जैसे ये परिवार मेरे लिए ही बना था. बस, मैंने यहां रहना शुरू नहीं किया था. सब कुछ कितना सहज, कितना प्यारा है. सब अपने लगते हैं.”
“ओके-ओके, अब इतना भी मत डूब जा अपनी ससुराल में कि तेरा अपना अलग वजूद ही ना रहे. सच बताऊं, तो लकी तू नहीं, तेरे ससुरालवाले हैं, जिन्हें तेरी जैसी नौकरीपेशा और बेवकूफ़ बहू मिली है.” अपनी बड़ी बहन निकिता की विरोधाभासी बात पर सन्न श्वेता उसका चेहरा ताकती रह गई. कुछ पल को लगा शायद यह मज़ाक था या सुनने में कुछ ग़लती हुई थी.
पहली बार छोटी बहन की ससुराल आई निकिता दीदी के तीन दिन के प्रवास को जीवंत बनाने में श्वेता के सास-ससुर और पति उदित ने कोेई कसर नहीं छोड़ी थी. श्वेता साफ़ देख रही थी कि उसके वजूद को हाथोंहाथ लिए उसकी हर इच्छा को सम्मान देनेवाले इस नए भरे-पूरे परिवार को देखकर निकिता अभिभूत है. ऐसे में इस तरह की टिप्पणी… यथार्थ से नितांत परे थी.
“क्या हुआ श्वेता? बुरा मान गई क्या? मैं तो बस इतना चाहती हूं कि दूसरों को ख़ुश करने और वाहवाही लूटने के चक्कर में तू अपना मटियामेट ना कर ले. यूं ही पूरी तनख़्वाह लाकर उदित के हाथ में दे देती है और उदित अपनी मम्मी को, और तो और, आए दिन सबके लिए गिफ्ट लाती रहती है. ये सब क्या है? जब से आई हूं, तेरी सास के मुंह से सुन रही हूं, श्वेता ने ये दिया, श्वेता ने वो दिया. कुछ उन्होंने भी दिया है या नहीं.”
“दीदी, उन्होंने मुझे बहुत कुछ दिया है. उदित जैसा प्यार करनेवाला पति और अपना संरक्षण, जिसके तले हम अपना जीवन सुकून से बिता रहे हैं. लाइफ में और क्या चाहिए? रही मम्मी-पापा की बात, तो उनको अपनी पेंशन मिलती है. हम क्या दे सकते हैं उन्हें? दे तो वो रहे हैं हमें, एक स्ट्रेसफ्री लाइफ…”
“फिर भी श्वेता किसी के हाथ में अपनी सारी सैलेरी रख देना, अ़क्लमंदी नहीं है. आज ये प्यार लुटा रहे हैं, कल क्या हालात हों, कौन जानता है. ये तो ख़ुदकुशी करने जैसा है.
मुझे देख, अपनी और अमोल दोनों की सैलेरी को मुट्ठी में रखती हूं.”
“दीदी, थोड़ा समर्पण और उनका विश्वास भी अपनी मुट्ठी में करना सीखो, वरना ये तो निरी रेत है, फिसल गई, तो हाथ खाली रह जाएंगे.”
“रहने दे श्वेता, समर्पण और विश्वास निरी क़िताबी बातें हैं. यही रिश्ते कल क्या रूप धरें, कौन जानता है?”
“कल के हालात से डरकर हम आज रिश्तों में दरारें डालें, उन्हें खाद-पानी से वंचित, स़िर्फ इसलिए सूखने दें कि कल इसमें फल कहीं कड़वे ना लग जाएं. आप जिसे बेव़कूफ़ी कह रही हैं, मैं उसे इन्वेस्टमेंट कहती हूं. रिश्तों का इन्वेस्टमेंट…
मेरी मानिए, तो आप भी अपनी ससुराल में यह इन्वेस्टमेंट करके जीवनभर मुनाफ़ा कमाइए.”
“तू और तेरी बड़ी-बड़ी बातें… कल जब ये लोग सब कुछ तेरी ननद को उठाकर दे देंगे, तब देखती हूं, तेरा ये इन्वेस्टमेंट कहां काम आता है?” श्वेता चुप थी. शायद दीदी को बदलना उसके हाथ में नहीं था. पर निकिता ख़ुश थी… आख़िर आज उसे श्वेता को नीचा दिखाने का मौक़ा मिल ही गया. याद आया, किस तरह से उससे तीन साल छोटी बहन ने अमोल के सामने उसे निरुत्तर कर दिया था. एक बार निकिता ने श्वेता को बताया कि अमोल ने उससे घर के पज़ेशन के वक़्त थोड़ी-सी फाइनेंशियल हेल्प मांगी थी, पर निकिता ने अमोल को साफ़ मना कर दिया था कि घर के बारे में सोचना उसका काम है. अगर वह हाउसवाइफ होती, तो क्या वह इंतज़ाम नहीं करते. यह बात अमोल को चुभी थी. उस दिन के बाद निकिता से कभी कुछ नहीं मांगा. निकिता की इस बात पर श्वेता ने उस वक़्त तो कुछ नहीं कहा, लेकिन दूसरे दिन दीपावली की रात अमोल ने निकिता को सोने के झुमके दिए, तो निकिता ने इतराते हुए कहा था, “दुनिया का दस्तूर है, पति की कमाई पर पत्नी का पूरा अधिकार और पत्नी की कमाई सौ टका पत्नी की. उसमें कोई हाथ नहीं लगा सकता है.” उस वक़्त श्वेता ने अपने जीजाजी का पक्ष लेते हुए हंसकर कहा था. “दीदी, ये ग़लतफ़हमी मत रखना कि हाउसवाइफ मिलने पर जीजू के हाथ खाली रह जाते. सुबह से लेकर रात को सोने तक जीजू जिस तरह से तुम्हारा हाथ बंटाते हैं, वह क़ाबिले-तारीफ़ है. आप जॉब नहीं कर रही होतीं, तो सुबह-सुबह बस स्टॉप छोड़ने की चिंता छोड़ जीजू आराम से सो रहे होते. जीजू को गर्म खाना, सुबह-शाम की चाय तो मिलती. तुम्हारे पीछे आनेवाली नौकरों की फौज संभालने का झंझट नहीं रहता.”
“अरे, बस कर, तू मेरी बहन है या दुश्मन.” निकिता ने श्वेता को टोका था. तीन साल पहले घटी इस बात को श्वेता मज़ाक समझकर भूल गई थी, पर निकिता इस सच को अमोल के सामने उजागर करने के अपराध से श्वेता को मुक्त नहीं कर पाई थी. आज
हाथ आया मौक़ा वो कैसे गंवाती, तभी शायद श्वेता को उसकी तल्ख़ बातों का सामना करना पड़ा था.
निकिता कुछ और कहती, उससे पहले श्वेता की सास दमयंतीजी आ गईं. उन्होंने श्वेता से अपने कुंदनवाले सेट को आलमारी से निकालने को कहा. बड़े अधिकार से गुच्छे को संभालती श्वेता आलमारी से कुंदन का सेट निकालकर लाई, तो मां उसे हाथों में उठाकर तौलती-सी श्वेता से बोलीं, “नंदिनी बहुत दिनों से कुंदनवाले सेट की तारीफ़ कर रही है. मुझे लगता है उसे पसंद है. सोच रही हूं, ऐसे ही हल्के में बनवाकर उसे दे दूं.”
“मम्मी, आप दीदी को यही सेट क्यों नहीं दे देतीं.” बोलती श्वेता की नज़र सहसा निकिता से मिली. वह जलती नज़रों से उसे घूर रही थी, तो उसने अचकचाकर आंखें फेर लीं.
दमयंतीजी ने कुछ नहीं कहा. बस, मुस्कुराकर सेट लेकर चली गईं. निकिता श्वेता की बेव़कूफ़ी पर कुछ कहती, उससे पहले श्वेता ने वहां से निकलने में अपनी भलाई समझी.
दूसरे दिन श्वेता की शादी की पहली सालगिरह थी. निकिता उसके कमरे में गिफ्ट लेकर पहुंची तो देखा, वह अपनी ननद नंदिनी से फोन पर बतिया रही थी, “दीदी, आप नहीं आएंगी, तो मज़ा आधा रह जाएगा, पर कोई बात नहीं. आप बच्चों के इम्तहान दिलाइए. पलक से कहना ख़ूब अच्छे नंबर लेकर आए. उसकी मामी ने उसके अच्छे रिज़ल्ट के लिए गिफ़्ट अभी से ख़रीद लिया है.” श्वेता ने फोन रखा ही था कि निकिता फिर शुरू हो गई थी. “श्वेता, गिफ्ट लेने का अधिकार तेरा बनता है.”
“ओहो दीदी! बेटी होने के नाते नंदिनी दीदी की ख़ुशी इस घर से जुड़ी है. वो ख़ुश, तो सब ख़ुश… रिश्तों में इन छोटी-मोटी भेंटों के बड़े मायने होते हैं. ये सब रिश्तों का इन्वेस्टमेंट हैं, जिसमें मेरी निकिता दीदी कभी विश्वास नहीं करती हैं.” उसने हंसते हुए कहा, “उ़फ्! तू और तेरा इन्वेस्टमेंट… गंवा देगी एक दिन अपनी सारी कमाई. विश्वास नहीं होता कि तू मेरी बहन है और ये क्या बात हुई कि मुझे रिश्तों में विश्वास नहीं है, ऐसा होता तो तेरे कहने से मैं छुट्टी लेकर तेरी मैरिज एनिवर्सरी मनाने ना चली आती.” निकिता की बात पर श्वेता ने प्यार से उनके हाथों को पकड़कर कहा, “उसके लिए मेरी प्यारी दीदी को बहुत-बहुत थैंक्स. पर एक बात बोलूं, बुरा मत मानना. मायके से जुड़े रिश्तों को निभाना आसान है, क्योंकि वो बचपन से जुड़े हैं, हमें आदत है उनकी, लेकिन ससुराल से जुड़े रिश्तों को निभाना आसान नहीं है. उसके लिए आपसी समझ, विश्वास और समर्पण ज़रूरी है और उसी में हम चूक कर जाते हैं.” आज के दिन निकिता छोटी बहन से बहस नहीं करना चाहती थी, सो वो चुपचाप उसे गिफ्ट देकर चली गई.
शाम तक घर सबकी हंसी से गुलज़ार था. पर निकिता का मन दरक रहा था. पिछले हफ़्ते उसकी शादी की सालगिरह तो यूं ही निकल गई.
चाहती तो अमोल के साथ कुछ सार्थक पल बिता लेती, लेकिन वो व्यावहारिक थी. जानती थी इन भावनात्मक पहलुओं से जुड़कर जीवन नहीं चलता. अमोल आनेवाली एनिवर्सरी को लेकर पसोपेश में थे. ऐसे में निकिता ने उन्हें दुविधा से उबारते हुए कहा, “तुम्हारा टूर पर जाना बहुत ज़रूरी है. टारगेट पूरा नहीं किया, तो फाइनेंशियली प्रॉब्लम हो जाएगी. घर का पज़ेशन लेना है.”
“घर नहीं, मकान.”
“हां-हां वही…” अमोल के व्यंग्यबाण को नज़रअंदाज़ कर, मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली, “कितनी भी कोशिश कर लो, भावनाओं में बहकर, अपनी सैलेरी में हाथ नहीं लगाने दूंगी.” अपनी सेविंग्स में बरती गोपनीयता निकिता की मंशा जता देती थी. शादी के तीन साल बाद भी निकिता अमोल के परिवारवालों को अपना नहीं पाई थी. निकिता का कुछ था, तो अमोल का बनवाया मकान, उसके दिए ज़ेवर और पूरी तनख़्वाह, जिसका हिसाब-क़िताब वो समय-समय पर करती थी. उसका हमेशा से मानना रहा है कि स्त्री को अपने पैसों और अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई परेशानी ना हो. निकिता की ज़िद पर अमोल ने मकान के लिए लोन लिया, पर लोन चुकाने के चक्कर में उसे ओवरटाइम तक करना पड़ा, जिससे उसकी सेहत तक बिगड़ी. बढ़ती सेविंग्स निकिता के भविष्य को सिक्योर करती गई, पर वर्तमान उसके हाथ से कब फिसला, वह जान ही नहीं पाई.
पति और परिवार के साथ बिताए हल्के-फुल्के पलों की क़ीमत उसने नहीं आंकी थी. घर के पज़ेशन के समय भुगतान की चिंता में डूबे अमोल की हालत उसके पिता से देखी नहीं गई, उन्होंने अपनी जमापूंजी बेटे के हवाले की, तो निकिता को अपनी चतुराई पर मान हो आया. डर था कि कहीं अमोल उससे रुपए ना मांग ले, पर यहां तो सब आसानी से हल हो गया. निकिता विचारों में खोई बैठक की ओर आई, तो वहां बैठी दमयंतीजी अपने पति से बोल रही थीं, “सुनो… कुंदन का सेट मैं इस बार श्वेता को दे रही हूं. अपनी श्वेता आगे बढ़कर तो मांगेगी नहीं, सोच रही हूं गिफ्ट के बहाने दे दूंगी.” “ऊंह! बेव़कूफ़ श्वेता, सब कुछ तो इनके हवाले कर देती है. सोने के अंडे देनेवाली मुर्गी को कोई हलाल करता है भला.” बुदबुदाती हुई निकिता उनके पास ही चली आई, मन की कसमसाहट और बढ़ गई थी.
उदित और श्वेता भी वहां आ ग
ए. दोनों झुककर दमयंतीजी और उमाकांतजी का आशीर्वाद लेने लगे. वो गदगद हो उठे, आशीर्वाद की झड़ी के साथ दमयंतीजी ने साधिकार बैठने का आदेश दिया और
मुस्कुराकर यह कहते हुए कुंदन का सेट श्वेता के हाथ में रख दिया, “आज इसे पहनकर डिनर पर जाना.”
“ओ मम्मी, लव यू…” श्वेता सास के गले लगी हुई थी, तभी उमाकांतजी की आवाज़ आई, “बिटिया, इसे पकड़ो और तुम लोग संभालो. पांच-पांच लाख की एफडी तुम्हारे और उदित के नाम है.”
“पर क्यों पापा?”
“क्यों की क्या बात है? सैलेरी तो तुम लोगों से संभलती नहीं, सो हमें दे देते हो. अब थोड़ी ज़िम्मेदारी तुम भी संभालो.” ससुर की आवाज़ में उलाहने का स्नेहभरा स्वांग था, जबकि आंखों में बेटे-बहू के प्रति गर्व झलक रहा था. वो बोल रहे थे.
“अब तुम लोगों को अपने बारे में सोचना नहीं आता, तो ये काम हमें करना पड़ेगा. उदित, तुम्हारी पुरानी एफडी मैच्योर हो रही है, उसे अब घर में लगा दो.”
“पापा, हम आपको इस घर में अच्छे नहीं लगते हैं क्या?” उदित की बात पर वो बोले, “आगे तुम लोग कहां रहते हो, वो बाद की बात है, फ़िलहाल एक घर तुम लोगों का अपना भी होना चाहिए. और ज़रूरी बात, नए घर की बुकिंग बहू के नाम से होगी…” ‘नए घर की बुकिंग’. ये अनुगूंज देर तक निकिता के कानों में गूंजती रही. प्रत्युत्तर में उसे अमोल की मम्मी के शब्द सुनाई दिए- ‘अमोल, घर अपने नाम से लेना.’ क्यों? का प्रश्न अमोल की तरफ़ से नहीं आया था. अमोल की मम्मी बोल रही थीं- ‘तेरी पत्नी बड़ी तेज़ है. अभी से इतना अपना-पराया है, तो बाद में क्या होगा.’ उफ़्! उस दिन आग लग गई थी निकिता के तन-बदन में. कितना सुनाया था अमोल को. पर वो चुपचाप सुनते रहे. शायद आईना दिखाकर ख़ुद को और उसे नीचे नहीं गिराना चाहते थे. अपने प्रति अविश्वास पर आश्चर्य व्यक्त करती निकिता आज चुप थी. वो देख पा रही थी, जो विश्वास श्वेता पर उसके सास-ससुर ने किया था, उसके पीछे श्वेता के छोटे-बड़े कई प्रयास थे, जिनका बड़ा प्रतिफल उसे मिला था. दमयंतीजी बोल रही थीं, “एक बार इनका घर बन जाए, तो चिंता दूर हो…”
‘घर नहीं, मकान…’ वहीं बैठी निकिता बोलना चाहती थी, पर सबके उल्लासित चेहरे देखकर चुप रही. जहां इतना उमंग-उत्साह, समर्पण-स्नेह और आदर हो, वहां मकान अपने आप ही घर बन जाता है.
एक बार फिर उसने श्वेता से ख़ुद की तुलना की तो दंग रह गई. श्वेता के गंवाने के बावजूद कई गुना हो, सब वापस कैसे मिला? जबकि उसके पास उतना ही रहा, जितना उसका हिस्सा था. वो भी सहसा हल्का हो गया. इतना हल्का कि पलड़ा हवा में लटक रहा था. जबकि श्वेता की संपदा में घरवालों का प्यार, संरक्षण और विश्वास था, तभी शायद उसका पलड़ा धरती को छू रहा था. निकिता ने बिना जांचे-परखे ही ससुराल और अमोल पर अविश्वास व्यक्त किया था. अमोल ने तो फिर भी जांच-परखकर निकिता के प्रति अविश्वास और स्वकेंद्रित नारी की छवि बनाई थी. शिकायत की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी. सच तो है… कितनी ऐसी ज़रूरतें आईं, जिसे वो सहज बांट सकती थी… पर ज़िम्मेदारियां और ज़रूरतें तो जीवनभर लगी रहेंगी, उसे पूरा करना पुरुष के अधिकार क्षेत्र में आता है, कहकर वह सदा अमोल को कुंठित करती रही. ख़ुद को चतुर समझनेवाली निकिता श्वेता की चतुराई पर हैरान थी. वो तो अपने हिस्से पर अपना डेरा डाले उसे सुरक्षित रखने की जद्दोज़ेहद में पड़ी रही. इधर श्वेता ने कितनी आसानी से अपने हिस्से पर सबको जगह देकर उनके दिलों पर अपना स्थान सुनिश्चित करा लिया था सदा के लिए…

मैं तुम्हारी जिन्दगी हूँ



।।दिल छु लेगी ये Story ऐक बार जरूर पडें।।

आज बहुत दिनो बाद पुरानी इंग्लिश की वो Notebook खोली तो वो गुज़रा हुआ लम्हा आंखो मे फिर से उतर आया .
और पुरी शरीर काँप सी गयी और आंखो से अश्क टपकने लगे ....
बात 11वीं के बाद 12वीं की है ....school की पहली क्लास थी मै काफ़ी दूर से cycle से school जाता था । ..
Class मे enter करते ही मेरे friends चिल्लाये अबे तेरी चैन खुली है ! मै क्या करता झटके से ध्यान किया ...
फिर उन्होने दुबारा से बोला अबे यार bag की chain......
फिर पुरी class हँसने लगी ...........और कोई मुस्करा रहा था तो वो थी आयशा.... मैने जैसे ही उसकी तरफ़ देखा वो भी मुस्कराना बंद कर दी......
कुछ दिन ऐसे ही class चलती रही .............कुछ अलग था तो ये की वो जब मेरे तरफ देखती... तो मै नज़रे झुका लेता
और कभी मै उसे देखता तो वो हल्का सा मुस्करा देती थी और उसकी वो smile जिन्दगी के हर खुशी से किमती थी |
Class के छुट्टी के बाद घर जाते time मै उसे बिना देखे जाता ही नही था.... वो तिराहे से अपने घर की तरफ़ मुड़ जाती थी...
मेरी आदत थी हिंदी लिखने के बाद ऊपर से लाइन नही खिचता था | उस दिन हिंदी के टीचर से Notebook चेक कराने गया तो Sir बोले की लाइन क्यूँ नी मारे...
मै बोला Sir Line मारना जरुरी होता है क्या ??
Sir बोले हाँ ...... class हँसने लगी और कोई सबसे ज्यादा हँस रही थी तो वो थी आयशा ......
उसको हँसता देख मुझको अलग ही खुशी मिलती थी ...
मै उसको देखता ही रहता था और किसी न किसी बहाने उसे हँसाता रहता था....
पर उससे कभी कुछ कहने की हिम्मत नही हुई |
पुरी class को लगता था की हम दोनो एक दूसरे को प्यार करते है......,अब शायद उसे भी लगने लगा था की मै उसे बहुत चाहता हूँ ....
एक दिन वो school नही आयी थी....
तो अगले दिन वो मेरे से First time मुझसे... कुछ माँगी और बोली की मुझे.... अपनी English ki notebook देदो!
मैने कहा ठीक है interval के बाद ले लेना
फिर मैने interval के time english के notebook के index page पे लिखा ...
आयशा तुम मेरी जिन्दगी हो ...
I LOVE YOU ....
जन्नत सी होगी मेरी जिन्दगी आयशा !!!अगर तुम्हारा साथ होगा........
और मैने उसे interval के बाद दे दिया ......मैने उस दिन की last क्लास मे उसे देखा पर वो मेरे तरफ़ ध्यान नही दी ....
फिर उस दिन school की छुट्टी के बाद हर रोज की तरह उसे देखने के लिये मैं तिराहे पे wait कर रहा था|
मेरे friends भी साथ मे थे ....वो cycle से आयी और मुझे देखके मुस्करायी और बोली कि तुम्हारी Notebook मेरे Desk के Drawer में है....
और जाने लगी ...मेरे friends बोले की वो तेरे को प्यार करती होगी तो तेरे बुलाने पे पीछे मुड़कर देखेगी
मैने भी आयशा आवाज़ लगा दी ....उसने मुझे पीछे मुड़के देखना चाहा और उसके cycle की handle मुड़ गयी....
सामने से आ रहा ट्रक उसकी cycle से
टकरा गया, उसको और उसकी cycle को रौंदता हुआ चला गया ...........और मैं कुछ न कर सका इतना भी वक्त नहीं मिला कि उसे Hospital लेके जाऊँ .....
उसकी साँसे हमेशा के लिए थम गईं....... और मैं रोता ही रह गया....
उसके बाद कई दिनो तक मैं school नही गया ..सब दोस्तो के कहने पे बहुत हिम्मत करके school गया...
तो हर बार उसकी bench पे ही नज़र जा रही थी ...
Interval हुआ सभी बाहर चले गये तो मै उसकी bench पे गया और बैठा उसकी bench की drawer मे देखा तो मेरी English की notebook पड़ी थी
और उसपे लिखा था ....
हाँ मैं तुम्हारी जिन्दगी हूँ....
LOVE YOU Toooo.......
इतना पढ़ते ही मेरी आंखो आँसू आ गए..... काश मैं उस दिन उसको आवाज नहीं लगायी होती तो
आज वो सच में मेरी जिदंगी नहीं...
मेरी जिंदगी में होती.....

आंसू सुख गये हो जैसे सिसकियॉं नही आती
तु नही है तो हमे हिचकियॉं नही आती
लिखने को लिख रखी है तेरे नाम कि कई चिट्ठियॉं
पर तु जहा है वहा चिट्ठियॉं नही आती.....

जूठा गुड

    जूठा गुड़

बहुत ध्यान से यह कहानी पढ़िएगा। दिल को छूने वाली कथा है ।


एक शादी के निमंत्रण पर जाना था। पर मैं जाना नहीं चाहता था। कारण की एक तो व्यस्त होना और दूसरा गांव की शादी में शामिल होने से बचना..
लेक‌िन घर परिवार का दबाव था सो जाना ही पड़ा।
उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर मैं गांव को जाने वाली रोड़ पर बैठा हुआ था। हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था। पास ही के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी।

 तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी  आकर रूकी और उसमें से एक वृद्ध उतरे। अमीरी उनके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।
वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये। पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी, उसमे गुड़ भरा हुआ था।  अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया। सभी गायें पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बिछुड़ने के बाद बच्चे अपने मां बाप को घेर लेते हैं। वे कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी। वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।
कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई,इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता।
हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था, वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे, मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े।
मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला अंकल जी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया, क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का जूठा गुड क्यों खाया ??
उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।
जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।
मैं अब भी नहीं समझा अंकल जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???
   वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था, परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया। इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था, भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा, और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।
तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ,यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था,मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था, मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई, मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया। मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।

 मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी, मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश  में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था, एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।
शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था, वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।
कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने, गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई, मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया।और वही सो गया, सुबह काम तलासने निकल गया, आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया। कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।
इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई,मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया, इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई, जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था,
मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा,और बहुत सोचता रहा, फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई, दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया,
शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ, जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया , मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डालकर इनका जूठा गुड़ खाता हूँ,

मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ ,
परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।

मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे, समझ गये अब तो तुम,
मैंने सिर हाँ में हिलाया, वे चल पड़े,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई , मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला
बापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।
सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।
 उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।

घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि.....,
गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है,
जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं।
 इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।
ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।

जय गौ माता 

अलख

अलख


रामू सेठ के पास अपार धन-संपत्ति थी, विशाल हवेली,नौकर-चाकर, सब तरह का आराम,फिर भी उसका मन अशांत रहता था। हर समय उसे कोई-न-कोई चिंता घेरे रहती थी। सेठ उदास रहता।
जब उसकी हालत बहुत खराब होने लगी तो एक दिन उसके एक मित्र ने उसे शहर से कुछ दूर आश्रम में रहने वाले साधु के पास जाने की सलाह दी। मित्र ने बताया,"वह पहुंचा हुआ साधु है। कैसा भी दुख लेकर जाओ, दूर कर देता है।"
रामू सेठ साधु के पास गया। अपनी सारी मुसीबत सुनाकर विनती करने लगा, "स्वामीजी! मैं जिंदगी से बेजार हो गया हूँ। मुझे बचाइए।"
साधु महात्मा बोले, "घबराओ नहीं,तुम्हारी सारी अशांति दूर हो जाएगी। प्रभु के चरणों में लौ लगाओ।"
साधु महात्मा ने रामू सेठ को ध्यान करने की सलाह दी और उसकी विधि भी समझा दी।
लेकिन,रामू सेठ का मन उसमें नहीं रमा। वह ज्योंही जप ध्यान करने बैठता, उसका मन कुरंग-चौकड़ी भरने लगता।
इस तरह कई दिन बीत गए। आखिर फिर पँहुच गया साधु महात्मा के आश्रम में।
उसने साधु महात्मा को अपनी परेशानी बताई। महात्मा जी ने सेठ को कुछ दिन आश्रम में ही बिताने को कहा।  एक दिन सेठ साधु महात्मा जी के साथ आश्रम में घूम रहा था कि उसके पैर में एक कांटा चुभ गया।
सेठ वहीं बैठ गया और पैर पकड़कर चिल्लाने लगा - "स्वामीजी, मैं क्या करूं? बड़ा दर्द हो रहा है।"
"चिल्लाते क्यों हो? कांटे को निकाल दो।" महात्मा जी बोले।
सेठ जी ने हिम्मत कर कांटे को निकाल ही दिया। अब उन्हें चैन पड़ गया।
अब महात्मा जी  ने गंभीर होकर कहा,"सेठ! तुम्हारे पैर में जरा-सा कांटा क्या चुभा कि तुम बेहाल हो गए, लेकिन यह तो सोचो कि तुम्हारे भीतर कितने बड़े-बड़े कांटे चुभे हुए हैं....
लोभ के, मोह के, क्रोध के, ईर्ष्या के, देश के और न जाने किस-किस के। जब तक तुम उन्हें नहीं उखाड़ोगे, तुम्हें शांति कैसे मिलेगी?"
साधु महात्मा  के इन शब्दों ने सेठ के अंतर में ज्योति जला दी।

आईये हम भी उखाड़ फेंके अपने भीतर के राग,द्वेष लोभ,मोह,क्रोध,ईर्ष्या,
अहंकार रूपी कांटे और अलख जगाएं आपसी प्रेम भाईचारे और देशभक्ति की,इसी मङ्गल कामना के साथ.......

गुणों को पहचानो

गुणों को पहचानो

एक सरोवर के तट पर एक खूबसूरत बगीचा था। इसमें अनेक प्रकार के फूलों के पौधे लगे हुए थे। लोग वहां आते, तो वे वहां खिले तमाम रंगों के गुलाब के फूलों की तारीफ जरूर करते। एक बार एक गुलाबी रंग के बहुत सुंदर गुलाब के पौधे के एक पत्ते के भीतर यह विचार पदा हो गया कि सभी लोग फूल की ही तारीफ करते हैं, लेकिन पत्ते की तारीफ कोई नहीं करता। इसका मतलब यह है कि मेरा जीवन ही व्यर्थ है।
यह विचार आते ही पत्ते के अंदर हीन भावना घर करने लगी और वह मुरझाने लगा। कुछ दिनों बाद बहुत तेज तूफान आया। जितने भी फूल थे, वे पंखुड़ी-पंखुड़ी होकर हवा के साथ न जाने कहां चले गए। चूंकि पत्ता अपनी हीनभावना से मुरझाकर कमजोर पड़ गया था, इसलिए वह भी टूटकर, उड़कर सरोवर में जा पड़ा। पत्ते ने देखा कि सरोवर में एक चींटी भी आकर गिर पड़ी थी और वह अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। चींटी को थकान से बेदम होते देख पत्ता उसके पास आ गया। उसने चींटी से कहा - घबराओ मत, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें किनारे पर ले चलूंगा।
चींटी पत्ते पर बैठ गई और सही-सलामत किनारे तक आ गई। चींटी इतनी कृतज्ञ हो गई कि पत्ते की तारीफ करने लगी। उसने कहा - मुझे तमाम पंखुड़ियां मिलीं, लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की, लेकिन आपने तो मेरी जान बचा ली। आप बहुत ही महान हैं।
यह सुनकर पत्ते की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला- धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए कि तुम्हारी वजह से मैं अपने गुणों को जान सका। अभी तक तो मैं अपने अवगुणों के बारे में ही सोच रहा था, लेकिन आज अपने गुणों को पहचानने का अवसर मिला।

कथा-मर्म : किसी से तुलना करके हीन-भावना पैदा करने की बजाय सक्रिय होकर अपने भीतर के गुणों को पहचानना चाहिए |

महिला की जाति

महिला की जाति

एक आदमी ने महिला से पूछा- तेरी जाति क्या है?
महिला ने पूछा : एक मां की या एक महिला की ..?
उसने कहा - चल दोनों की बता ..
और मुस्कान बिखेरी ।
महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया.......
एक महिला जब माँ बनती  है तो वो जाति विहीन हो जाती है..
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा - वो कैसे..?
जबाब मिला कि .....
जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती है,
अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है ,
तो वो शूद्र हो जाती है..
वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है..
जब बच्चा और बड़ा होता है, तो मां उसे शिक्षित करती है,
तब वो ब्राह्मण हो जाती है..
और अंत में जब बच्चा और बड़ा  होता है तो मां
उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर
अपना वैश्य धर्म निभाती है ..
तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन..
उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में
महिलाओं या माँओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और महिला को अपने मां और महिला होने पर पर गर्व का अनुभव हो रहा था।

Tuesday, June 25, 2019

मकान मालिक

मकान मालिक - मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है

कल अपनी पुरानी सोसाइटी में गया था। वहां मैं जब भी जाता हूं, मेरी कोशिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों से मुलाकात हो जाए।
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।
“भैया, प्रणाम।”
मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,
"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"
मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।
“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”
बाबू हंसा,
“आंटी तो गईं।”
“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”
अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,
“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”
“भगवान जी के पास? ओह! कब?”
बाबू ने धीरे से कहा,
“दो महीने हो गए।”
“क्या हुआ था आंटी को?”
“कुछ नहीं। बुढ़ापा ही बीमारी थी। उनका बेटा भी बहुत दिनों से नहीं आया था। उसे याद करती थीं। पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं। कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा। बहुत मेहनत से ये मकान बना है।”
“हां, वो तो पता ही है। तुमने खूब सेवा की। अब तो वो चली गईं। अब तुम क्या करोगे?”
अब बाबू फिर हंसा,
"मैं क्या करुंगा भैया? पहले अकेला था। अब गांव से फैमिली को ले आया हूं। दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं रहते हैं।”
“यहीं मतलब उसी मकान में?”
“जी भैया। आंटी के जाने के बाद उनका बेटा आया था। एक हफ्ता रुक कर चले गए। मुझसे कह गए हैं कि घर देखते रहना। चार कमरे का इतना बड़ा फ्लैट है। मैं अकेला कैसे देखता? भैया ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो। वो वहां से पैसे भी भेजने लगे हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है। अब आराम से हूं। कुछ-कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं। भैया सारा सामान भी छोड़ गए हैं। कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं।”
मैं हैरान था। बाबू पहले साइकिल से चलता था। आंटी थीं तो उनकी देखभाल करता था। पर अब जब आंटी चली गईं तो वो चार कमरे के मकान में आराम से रह रहा है।
आंटी अपने बेटे के पास नहीं गईं कि कहीं कोई मकान पर कब्जा न कर ले।
बेटा मकान नौकर को दे गया है, ये सोच कर कि वो रहेगा तो मकान बचा रहेगा।
मुझे पता है, मकान बहुत मेहनत से बनते हैं। पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसके आप सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं?
मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं। मकान के लिए बेटा मां को पास नहीं बुला पाया।

सच कहें तो हम लोग मकान के पहरेदार ही हैं।
जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है। जो हैं, उसके बारे में तो बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे।
मैंने बाबू से पूछा कि,
"तुमने भैया को बता दिया कि तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है?"
“इसमें बताने वाली क्या बात है भैया? वो अब कौन यहां आने वाले हैं? और मैं अकेला यहां क्या करता? जब आएंगे तो देखेंगे। पर जब मां थीं तो आए नहीं, उनके बाद क्या आना? मकान की चिंता है, तो वो मैं कहीं लेकर जा नहीं रहा। मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”
बाबू फिर हंसा।
बाबू से मैंने हाथ मिलाया। मैं समझ रहा था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा। वो मकान मालिक हो गया है।
हंसते-हंसते मैंने बाबू से कहा,
भाई, जिसने ये बात कही है कि
मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,
उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा।”
बाबू ने धीरे से कहा,
“साहब, सब किस्मत की बात है।”
मैं वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है।
लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी...
“मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही?मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”
मैं सोच रहा था, मकान लेकर कौन जाता है? "सब "......देखभाल ही तो करते हैं.........!!!

मकान नहीं, जीवन बनाए, वो चीज़ इकट्ठा करो जिसके मालिक आप हों कोई और नहीं, वरना इतनी मेहनत करके इकठ्ठा करने का फायदा क्या हुआ?

दुनिया बदलने के लिए खुद को बदलिये


दुनिया बदलने के लिए खुद को बदलिये

एक बार की बात है किसी दूर राज्य में राजा शासन करता था। उसके राज्य में सारी प्रजा बहुत संपन्न थी किसी को कोई भी दुःख नहीं था ना ही किसी का कोई ऋण था। राजा के पास भी खजाने की कमी नहीं थी वह बहुत वैभवशाली जीवन जीता था।

एक बार राजा के मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपने राज्य का निरिक्षण किया जाये, देखा जाये कि राज्य में क्या चल रहा है और लोग कैसे रह रहे हैं। तो राजा ने कुछ सोचकर निश्चय किया कि वह बिना किसी वाहन के पैदल ही भेष राज्य में घूमेगा जिससे वो लोगों की बातें सुन सके और उनके विचार जान सके । फिर अगले दिन से ही राजा भेष बदल कर अकेला ही राज्य में घूमने निकल गया उसे कहीं कोई दुखी व्यक्ति दिखाई नहीं दिया फिर धीरे धीरे उसने अपने कई किलों और भवनों का निरिक्षण भी किया।

जब राजा वापस लौटा तो वह खुश था कि उसका राज्य संपन्न है लेकिन अब उसके पैरों में बहुत दर्द था क्युकी ये पहला मौका था जब राजा इतना ज्यादा पैदल चला हो । उसने तुरंत अपने मंत्री को बुलाया और कहा – राज्य में सड़के इतने कठोर पत्थर की क्यों बनाई हुई हैं देखो मेरे पैरों में घाव हो गए हैं, मैं इसी वक्त आदेश देता हूँ कि पुरे राज्य में सड़कों पे चमड़ा बिछवा दिया जाये जिससे चलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मंत्री यह सुनते की सन्न रह गया, बोला – महाराज इतना सारा चमड़ा कहाँ से आएगा और इतने चमड़े के लिए ना जाने कितने जानवरों की हत्या करनी पड़ेगी और पैसा भी बहुत लगेगा। राजा को लगा कि मंत्री उसकी बात ना मान कर उसका अपमान कर रहा है, इसपर राजा ने कहा- आपको जो आदेश दिया गया उसका पालन करो देखो मेरे पैरों में पत्थर की सड़क पे चलने से कितना दर्द हो रहा है।

मंत्री बहुत बुद्धिमान था, मंत्री ने शांत स्वर में कहा – महाराज पुरे राज्य में सड़क पर चमड़ा बिछवाने से अच्छा है आप चमड़े के जूते क्यों नहीं खरीद लेते। मंत्री की बात सुनते ही राजा निशब्द सा होकर रह गया।

मित्रों इसी तरह हम रोज अपनी जिंदगी में ना जाने कितनी परेशानियों को झेलते हैं और हम सारी परेशानियों के लिए हमेशा दूसरों को दोषी ठहराते हैं, कुछ लोगों को तो दुनिया की हर चीज़ और हर व्यवस्था में दोष दिखाई देता है। हम सोचते हैं कि फलां आदमी की वजह से आज मेरा वो काम बिगड़ गया या फलां व्यक्ति की वजह से मैं आज ऑफिस के लिए लेट हो गया या फलां व्यक्ति की वजह से मैं फेल हो गया, सड़क पर पड़े कूड़े को देखकर सभी लोग नाक पर रुमाल रखकर दूसरों को गलियां देते हुए निकल जाते हैं लेकिन कभी खुद सफाई के लिए आगे नहीं आ पाते वगैहरा वगैहरा। लेकिन हम कभी खुद को सुधारने की कोशिश नहीं करते, कभी खुद परिवर्तन का हिस्सा बनने की कोशिश नहीं करते। मित्रों एक एक बूंद से घड़ा भरता है और आपका प्रयास एक बूंद ही सही लेकिन वो बूंद घड़ा भरने के लिए बहुत जरुरी है। दूसरों को दोष देना छोड़िये और खुद को परिवर्तन करिये फिर देखिये दुनियाँ खुद परिवर्तन हो जाएगी

अंतर्यात्रा

अंतर्यात्रा

जापान में एक झेन फकीर को कुछ मित्रों ने भोजन पर बुलाया था। सातवीं मंजिल के मकान पर भोजन कर रहे हैं, अचानक भूकंप आ गया। सारा मकान कांपने लगा। भागे लोग। कोई पच्चीस-तीस मित्र थे। सीढ़ियों पर भीड़ हो गयी। जो मेजबान था वह भी भागा ।

लेकिन भीड़ के कारण अटक गया दरवाजे पर। तभी उसे ख्याल आया कि मेहमान का क्या हुआ ? लौटकर देखा, वह झेन फकीर आंख बंद किये अपनी जगह पर बैठा है।

जैसे कुछ हो ही नहीं रहा!

मकान कंप रहा है, अब गिरा तब गिरा। लेकिन उस फकीर का उस शांत मुद्रा में बैठा होना, कुछ ऐसा उसके मन को आकर्षित किया, कि उसने कहा, अब जो कुछ उस फकीर का होगा वही मेरा होगा।  रुक गया। कंपता था, घबड़ाता था, लेकिन रुक गया।  भूकंप आया, गया। कोई भूकंप सदा तो रहते नहीं।

फकीर ने आंख खोली, जहां से बात टूट गयी थी भूकंप के आने से, वहीं से बात शुरू की। लेकिन मेजबान ने कहा : मुझे क्षमा करें, मुझे अब याद ही नहीं कि हम क्या बात करते थे। बीच में इतनी बड़ी घटना घट गयी है कि सब अस्तव्यस्त हो गया। अब तो मुझे एक नया प्रश्न पूछना है। हम सब भागे, आप क्यों नहीं भागे?

उस फकीर ने कहा : तुम गलत कहते हो। तुम भागे, मैं भी भागा। तुम बाहर की तरफ भागे, मैं भीतर की तरफ भागा। तुम्हारा भागना दिखाई पड़ता है, क्योंकि तुम बाहर की तरफ भागे। मेरा भागना दिखाई नहीं पड़ा तुम्हें लेकिन अगर गौर से तुमने मेरा चेहरा देखा था, तो तुम समझ गये होओगे कि मैं भी भाग गया था।  मैं भी यहां था नहीं, मैं अपने भीतर था। और मैं तुमसे कहता हूं के मैं ही ठीक भागा।, तुम गलत भागे। यहां भी भूकंप था और जहां तुम भाग रहे थे वहां भी भूकंप था। बाहर भागोगे तो भूकंप ही भूकंप है। मैं ऐसी जगह अपने भीतर भागा। जहां कोई भूकंप कभी नहीं पहुंचता है। मैं वहां निश्चित था। मैं बैठ गया अपने भीतर जाकर।

अब बाहर जो होना हो हो। मैं अपने अमृत -गृह मैं बैठ गया, जहां मृत्यु घटती ही नहीं। मैं उस निष्कंप दशा में पहुंच गया, जहां भूकंपों की कोई बिसात नहीं। अगर तुम्हें बाहर का जोखिम दिखाई पड़ जाये तो तुम्हारे जीवन में अंतर्यात्रा शुरू हो सकती है।

संसार में जीने के दो तरीके हैं । एक - भौतिक वस्तुओं का सुख भोगते हुए जीना। दूसरा तरीका है -अध्यात्मिक सुख भोगते हुए जीना। ' जो व्यक्ति आंख नाक कान इत्यादि इंद्रियों से रूप गंध शब्द आदि विषयों का सुख लेता है , तो इसका अर्थ है कि वह भौतिक सुख भोग रहा है।

जो व्यक्ति सेवा परोपकार दान दया यज्ञ ईश्वरोपासना स्वाध्याय सत्संग वैदिक शास्त्रों का अध्ययन  इत्यादि शुभ कर्म करके जीवन जीता है , उसे अंदर से ईश्वर सुख देता है । वह अध्यात्मिक सुख भोग रहा है ।

शानदार .....शिकायत

 शानदार .....शिकायत

अपने पिता की मृत्यु के बाद बेटे ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया और कभी कभार उनसे मिलने चला जाता था ।

एक शाम उसे वृद्धाश्रम से फ़ोन आया कि तुम्हारी माता जी की तबियत बहुत ख़राब है, एक बार आकर मिल लो।

पुत्र वहाँ गया तो उसने देखा कि माँ कि हालत बहुत गंभीर और मरणासन्न है ।

उसने पूछा :- माँ मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ?

माँ ने जवाब दिया :- कृपा करके वृद्धाश्रम में पंखे लगवा दे यहाँ एक भी नहीं है ।

और हाँ एक फ्रिज भी रखना देना ताकि खाना ख़राब ना हो क्योंकि कई बार मुझे बिना खाए ही सोना पड़ा ।

पुत्र ने आश्चर्यचकित होकर पूछा :- माँ, आपको यहाँ इतना समय हो गया आपने कभी शिकायत नहीं करी, अब जब आपके जीवन का कुछ ही समय बचा है तब आप मुझे यह सब बता रही हो ।क्यों ?

माँ ने जवाब दिया :- ठीक है बेटा, मैंने तो गर्मी, भूख और दर्द सब बर्दाश्त तर लिया, लेकिन.......
   
जब तुम्हारी औलाद तुम्हें यहाँ भेजेगी तो मुझे डर है कि तुम ये सब सह नहीं पाओगे

द्वारिकाधीश मंदिर-कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?

द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका, पुरी, गुजरात


द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा तीर्थस्थल है।यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है।यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है।

इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।

इतिहास में मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड़ यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की महिमा है। यह चार धामों में एक है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों। पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी। पर मथुरा उन्होंने छोड़ दी और द्वारका बसाई।

वास्तु :- यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।

कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?

श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है।  एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।  आइए इस घटना पर विस्तार से जानते है।

प्राचीन द्वारका पुरी :

गांधारी ने दिया था यदुवंश के नाश का श्राप –
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

ऋषियों ने दिया था सांब को श्राप :

महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?

ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी |

मुनियों के श्राप के प्रभाव से दूसरे दिन ही सांब ने मूसल उत्पन्न किया। जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मूसल को चुरा कर समुद्र में डलवा दिया। इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।

द्वारका में होने लगे थे भयंकर अपशकुन :

इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने बढ़ गए कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा दिखाई देने लगे। वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे। उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी।

अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे प्रद्युम्न  :

जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।

यदुवंशियों के नाश के बाद अर्जुन को बुलवाया था श्रीकृष्ण ने  :

अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।

बलरामजी के स्वधाम गमन के बाद ये किया श्रीकृष्ण ने  :

द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।

वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।

ऐसे त्यागी श्रीकृष्ण ने देह  :

जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।

इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।

अर्जुन अपने साथ ले गए श्रीकृष्ण के परिजनों को :

वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।

अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

जय हो श्री द्वारिकाधीश की

Sunday, June 23, 2019

एक प्रेरणादायक प्रसंग-नेक कर्म

एक प्रेरणादायक प्रसंग

एक बार एक साधु तीर्थयात्रा पर जा रहा था ! रास्ते में उसे प्यास लगी ! काफी समय के पश्चात् एक गाँव आया वहां उसने एक व्यक्ति से पूछा-- भाई ! पीने को पानी कहाँ मिलेगा !! उस व्यक्ति ने एक ओर इशारा करते हुए कहा देखो वहां एक कुआ है , उस कुए पर एक बाल्टी एवं रस्सी है ,पानी शीतल एवं मीठा है ! साधू ने कुए तक पहुँच कर पानी निकला और पीकर तृप्त होगया और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गया !अभी कुछ कदम चला ही था की उसके मन में विचार आया की " मुझे इतनी लम्बी यात्रा के बाद पीने को पानी मिला है अब पता नहीं कब मिलेगा !" साधु वापिस कुए पर आया और उसने बाल्टी भरकर अपने साथ ले चला ! कुछ कदम चला ही था की उसे लगा की वह बाल्टी की चोरी कर रहा है और वापिस कुए की तरफ चल दिया और उसने वह बाल्टी फिर कुए पर रख दी ! वापिस अपनी यात्रा पर चल दिया ! वो कुछ कदम चला तो उसका विवेक आत्मचिंतन करने लगा की "उसके मन में अधर्म का विचार क्यों आया " वो यह जानने के लिए वापिस गाँव आ गया ! वहां उसने एक व्यक्ति से पूछा --- भाई ये कुआ किसने बनवाया है ? उसे ज्ञात हुआ की एक डाकू ने अपने जीवन के अंतिम काल में "लुटे हुए धन से " ये कुआ बनवाया है !

विशेष -"नेक कर्म " पाप की कमाई से निष्फल होता है ! पाप को जन्म पाप की कमाई से ही होता है ! परोपकार का कार्य.....
१. ईमानदारी से कमाए धन
२. परिश्रम से कमाए धन
३. परोपकार की भावना को ध्यान में रखकर कमाए धन एवं
४. योग्य कर्म (noble profession )  से कमाए धन से ही फलीभूत होता है !

जो व्यक्ति पाप के धन बल से मुग्ध रहता है वह एक मकड़ी के समान है जो धन कमाने के लिए जाला बुनती रहती है कभी दूसरों का धन हरण करने के लिए , कभी बिना परिश्रम से कमाने के लिए , कभी झूट बोलकर कमाने के लिए एवं अनेक अन्य पाप कर्मो का जाला जब बुन जाता है तो वो मकड़ी उसी में फसकर मर जाती है ! उसकी सदगति नहीं होती है ! सदगति तो मनोविकारों से मुक्ति ( मोक्ष ) पाने से ही होती है ! इसीलिए तो वेदों ने चार पुर्षार्थों में अंतिम पुरुषार्थ " मोक्ष " को रखा है ! मोक्ष प्राप्त जीवात्मा १. कर्म बंधनो के कारण " पुनर्जन्म " के लिए बाधित नहीं रहती है ! २. मोक्ष प्राप्त आत्मा जब तक चाहे " परम सत्ता यानि परमात्मा में विलीन रह सकती है !

भीम-दस हज़ार हाथियों का बल

भीम-दस हज़ार हाथियों का बल


पाण्डु पुत्र भीम के बारे में माना जाता है की उसमे दस हज़ार हाथियों का बल था जिसके चलते एक बार तो उसने अकेले ही नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था। लेकिन भीम में यह दस हज़ार हाथियों का बल आया कैसे इसकी कहानी बड़ी ही रोचक है।

कौरवों का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था जबकि पांचो पांडवो का जन्म वन में हुआ था। पांडवों के जन्म के कुछ वर्ष पश्चात पाण्डु का निधन हो गया। पाण्डु की मृत्यु के बाद वन में रहने वाले साधुओं ने विचार किया कि पाण्डु के पुत्रों, अस्थि तथा पत्नी को हस्तिनापुर भेज देना ही उचित है। इस प्रकार समस्त ऋषिगण हस्तिनापुर आए और उन्होंने पाण्डु पुत्रों के जन्म और पाण्डु की मृत्यु के संबंध में पूरी बात भीष्म, धृतराष्ट्र आदि को बताई। भीष्म को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कुंती सहित पांचो पांण्डवों को हस्तिनापुर बुला लिया।

हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों के वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे में, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था। परंतु दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। तब उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया।

दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।

तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए।

जब दुर्योधन ने भीम को विष देकर गंगा में फेंक दिया तो उसे बड़ा हर्ष हुआ। शिविर के समाप्त होने पर सभी कौरव व पाण्डव भीम के बिना ही हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गए। पाण्डवों ने सोचा कि भीम आगे चले गए होंगे। जब सभी हस्तिनापुर पहुंचे तो युधिष्ठिर ने माता कुंती से भीम के बारे में पूछा। तब कुंती ने भीम के न लौटने की बात कही। सारी बात जानकर कुंती व्याकुल हो गई तब उन्होंने विदुर को बुलाया और भीम को ढूंढने के लिए कहा। तब विदुर ने उन्हें सांत्वना दी और सैनिकों को भीम को ढूंढने के लिए भेजा।

उधर नागलोक में भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागे। तब नागों ने भीम को गंगा के बाहर छोड़ दिया। जब भीम सही-सलामत हस्तिनापुर पहुंचे तो सभी को बड़ा संतोष हुआ। तब भीम ने माता कुंती व अपने भाइयों के सामने दुर्योधन द्वारा विष देकर गंगा में फेंकने तथा नागलोक में क्या-क्या हुआ, यह सब बताया। युधिष्ठिर ने भीम से यह बात किसी और को नहीं बताने के लिए कहा।

नया सवेरा

नया सवेरा 

12 बजने को आये पर साहिल की आँखों से नींद कोसों दूर थी, अपने किये पर घोर पछतावा हो रहा था उसे , कुछ घंटे पहले की बात है ,,,
"पापा आज खिचड़ी , मुझे नहीं खाना , मेरे लिए बाहर से खाना मँगवालो " "बेटा कहाँ से मँगवाऊं महंगा खाना ? इतनी मेरी तनख्वाह नहीं की में तुम्हारी पढाई के साथ यह सब भी पूरा कर सकू" ... आज मम्मी को बुखार था तुमने उनको दवाई भी नहीं दिलाई ? पापा कुछ पहले गुस्से में थे और इस बात पर और गुस्सा हो गए "पापा में पढ़ कर आया था और थक गया था " "जो बच्चे पढाई करते है , क्या उनका घर की तरफ कोई फर्ज नहीं बनता ?
साहिल की मम्मी को तेज बुखार था , न तो दवाई दिलाई और न ही कुछ खाने पीने को पूछा। पापा शाम को घर आये तो देखा रेखा बुरी तरह से बुखार से तप रही थी। तुरंत डॉक्टर के पास ले गए दवा दिलवाई। आखिर सबको भूख लगी थी , खिचड़ी बना ली। ऐसी स्थिति में जैसा मिल जाये खा लेना ही सच्चा कर्तव्य है।
सारा काम पापा ने किया ,मगर साहिल को इस से कोई वास्ता नहीं था। गुस्से के मारे कमरे में आकर लेट गया , न खाना खाया। खाली पेट कहाँ किसी को नींद आती है। साहिल बैठ कर ख्यालो मे उलझा हुआ था,, ‘क्या जो मैने कहा वो ठीक है ? पापा को कैसा लगा होगा मम्मी क्या सोच रही होगी ‘
धीरे-धीरे उसकी अंतरात्मा जागने लगी “नही जो किया तुमने उसे किसी भी तरह जायज नही कहा जा सकता । आज तुम सामर्थ्य हो स्वस्थ हो पढ़े-लिखे हो, आरामदेह जिंदगी है तुम्हारी किसके बदौलत ? जवान हो जहां हाथ रखते हो पापा अपनी सुख दुःख भुल कर तुम्हारी खुशिया और अरमानो पर आंच नही आने देते ।जहां कदम रखते हो’ मम्मी पलके बिछाये सारे कांटे चुन लेती है कि तुम्हे कोई कांटा भी ना चुभे । नही ‘ साहिल ‘तुमने हां तुमने ,,, उनका दिल दुखाया है ।
मम्मी-पापा ने तुम्हारे भविष्य के लिए सारे समझौते खुद से कर लिए क्यु, ,,,? याद आया वो पल,, वो तस्वीर जो उसकी कपूत होने की ओर ले जा रही थी । ‘साहिल ‘ ने सिर्फ अपनी खुशी के लिए, अपने लिए खुद एक गड्ढा खोद रहा था । ‘लापरवाही से दरकिनार कर दिया करता था ‘, पापा के सीख को मम्मी की बात को ‘
नींद कहां से आती भूखा रह कर, छटपटाहट से रात गुजरी कई सवालो ने जवाबो से दो दो हाथ किये दिल दिमाग और रूह की जिरह से नींद कब आयी और कब सुबह हो गई । मम्मी की हालत मे कुछ सुधार हो चला था ,पापा हाथ बटा रहे थे किचन मे उन्हे भी काम पर जाना था। मगर ,,,,,रोज
की तरह साहिल को जगाया नही गया । आज साहिल खुद ही जाग उठा था, समझ चुका था भूख किसे कहते है और जिंदगी मे भूख के मायने क्या है । क्यु पापा दिन रात अपने आप को काम से बांधकर घर चलाते है ,, फैसला ले लिया था साहिल ने । धीरे से मम्मी और पापा के करीब आया, और लिपट कर रूंधते गले से कहा,,
पापा मम्मी मुझे माफ कर दो। मैं गलत था और रात मे बहुत ही दुख पहुंचाया आपको ‘मुझे बहुत पछतावा है आगे से ऐसा नही होगा । मैं बहुत दुःखी हूॅ आप दोनो को दुख पहुंचा कर ।क्या कहते मम्मी पापा ,,,मम्मी की आंखे भर आयी और पापा के आंखो मे एक उम्मीद खुशी की उभरने लगी।
आज साहिल को बेशक किसी ने नहीं उठाया लेकिन ये उसका नया सवेरा था। मम्मी पापा ने गले से लगा लिए अपने बेटे को।

आत्मविश्वास नहीं खोएं

एक बार एक युवक को संघर्ष करते – करते कई वर्ष हो गए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। वह काफी निराश हो गया, और नकारात्मक विचारो ने उसे घेर लिया। उसने इस कदर उम्मीद खो दी कि उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। वह जंगल में गया और वह आत्महत्या करने ही जा रहा था कि अचानक एक सन्त ने उसे देख लिया।

सन्त ने उससे कहा – बच्चे क्या बात है , तुम इस घनघोर जंगल में क्या कर रहे हो?
उस युवक ने जवाब दिया – मैं जीवन में संघर्ष करते -करते थक गया हूँ और मैं आत्महत्या करके अपने बेकार जीवन को नष्ट करने आया हूँ। सन्त ने पूछा तुम कितने दिनों से संघर्ष कर रहे हों?
युवक ने कहा मुझे दो वर्ष के लगभग हो गए, मुझे ना तो कहीं नौकरी मिली है, और ना ही किसी परीक्षा में सफल हो सकां हूँ।
सन्त ने कहा– तुम्हे नौकरी भी मिल जाएगी और तुम सफल भी हो जायोगे। निराश न हो , कुछ दिन और प्रयास करो।
युवक ने कहा– मैं किसी भी काम के योग्य नहीं हूँ, अब मुझसे कुछ नहीं होगा।
जब सन्त ने देखा कि युवक बिलकुल हिम्मत हार चुका है तो उन्होंने उसे एक कहानी सुनाई।

“एक बार एक बच्चे ने दो पौधे लगाये , एक बांस का, और एक फर्न (नागफनी , कैक्टस ,पत्तियों वाला) का ,
फर्न वाले पौधे में तो कुछ ही दिनों में पत्तियाँ निकल आई। और फर्न का पौधा एक साल में काफी बढ़ गया पर बाँस के पौधे में साल भर में कुछ नहीं हुआ।
लेकिन बच्चा निराश नहीं हुआ।
दूसरे वर्ष में भी बाँस के पौधे में कुछ नहीं हुआ। लेकिन फर्न का पौधा और बढ़ गया।
बच्चे ने फिर भी निराशा नहीं दिखाई।
तीसरे वर्ष और चौथे वर्ष भी बाँस का पौधा वैसा ही रहा, लेकिन फर्न का पौधा और बड़ा हो गया।
बच्चा फिर भी निराश नहीं हुआ।
फिर कुछ दिनों बाद बाँस के पौधे में अंकुर फूटे और देखते – देखते कुछ ही दिनों में बाँस का पेड़ काफी ऊँचा हो गया।
बाँस के पेड़ को अपनी जड़ों को मजबूत करने में चार पाँच साल लग गए।

सन्त ने युवक से कहा – कि यह आपका संघर्ष का समय, अपनी जड़े मजबूत करने का समय है। आप इस समय को व्यर्थ नहीं समझे एवं निराश न हो। जैसे ही आपकी जड़े मजबूत ,परिपक्व हो जाएँगी, आपकी सारी समस्याओं का निदान हो जायेगा। आप खूब फलेंगे, फूलेंगे, सफल होंगें और आकाश की ऊँचाइयों को छूएंगें।
आप स्वंय की तुलना अन्य लोगों से न करें।
आत्मविश्वास नहीं खोएं। समय आने पर आप बाँस के पेड़ की तरह बहुत ऊँचे हो जाओगे।

सच्चा हिरा

सच्चा हिरा

सायंकाल का समय था सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई
इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें
इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग का भीम कहते हें
इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे ! मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें
यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली तो इतने में दूसरी ओरत ने कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहती हो”
इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें
यह सुनकर चारो स्त्रियों ने मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी
तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें वह कितना सुरीला गान गा रहा हें ” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया
अब दूर जाने पर एक बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें ” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया
तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें ” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया
तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र था
वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और निकल पढ़ा
यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई मानो उनको साप सुंघ गया हो वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

“ सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें

किसान का बैल


एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया.

अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।

धयान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...

 ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते रहना है!

सोसल मीडिया

"सत्य घटना पर आधारित"

पति- वह लोग कल आ रहे हैं, तू रिंकू से कहना की वह कल स्कूल न जाये
पत्नी - अरे कौन आ रहा है?
पति - हमारी रिंकू के देखने लड़के वाले आ रहे हैं हमारी रिंकू भाग्यशाली है की उसके लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आ रहा है ।
राज करेगी राज हमारी गुड़िया बेटी।
पत्नी - अरे??? ये क्या बात हुई? अभी हमारी बच्ची केवल 10 साल की है और उसे भले बुरे का उतना ज्ञान भी नहीं है और आप उसकी शादी की सोच रहे हो, आप पागल तो नहीं हो गये?
पति - तू तो 8 साल मे इस घर पे मेरे साथ ब्याह के आई थी क्या तूने भी कुछ सीखा था क्या? वैसे ही वह भी आस्ते आस्ते सब सीख जायेगी। हर लड़की का सपना होता है की उसे अच्छा पति और अच्छा परिवार मिले । हम वही तो दे रहे है अपनी बिटिया को।
पत्नी - हमने जो गलती की क्या वही गलती अपनी बेटी के साथ करें? अभी उसने सपने देखे भी नहीं होंगे की हम अपने सपनों को उसपे लादकर उसके सपनों को दबा दे? उसे थोड़ा समझदार तो होने दीजिए । फिर हम मिलकर फैसला करेंगे न की उसके लिए अच्छा बुरा क्या है। तभी सास की अवाज आती है...तू ज्यादा बकर बकर मत कर और चुपचाप जो हो रहा है होने दे..तू अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है की इस घर पे तेरी मनमानी चले।
पत्नी - क्या अपने ही कोख की मोती की भलाई के लिए बोलना भी मनमानी है?
सास- अब तू ज्यादा बोलेगी तो तेरा ही नुकसान होगा, तेरे जिद से कुछ होने वाला भी नहीं है। हम सबने फैसला कर लिया है और वही अटल है।
पति- तू कल मायके चली जाना और बेटी की शादी के बाद ही आना येदी तेरा मन करे तो...
रितीका चुपचाप कमरे मे जाके बैठी बैठी सोचने लगती है। की एक बेटी की उम्र सिर्फ 18या 20 साल तो होती है ,येही तो पूँजी होती है हर लडकीयों की जो इन मे अपने सपने बुनते है दोस्त बनाते है खेलते है मस्ती करते है माँ बाप के प्यार का भरपूर फायदा उठाते हैं । फिर शादी के बाद तो हकदार बदल जाते हैं बेटी अब कीसी की बहू तो कीसी की भाभी तो कीसी बिबी बन जाती है। कान भी तरस से जाते हैं फिर वही मिठे शब्द सुनने के लिए..बेटीटीटीटी....
अब रितीका फैसला करती है मन ही मन, कोख से बचाके लाई हूँ यूँ ही उसे मरने कहाँ दूंगी । फिर समय देखती है दोपहर के दो बज रहें है । फिर अपने साथ कुछ जरूरी समान लेके चुपचाप किसी को पता चले बगैर अपनी बेटी के स्कूल जाकर उसे वहीं से लेके दिशाहीन एक अंजान मंजिल की ओर निकल पड़ती है
ख्याल तो आया की मा बाप के घर जाने की मगर वहाँ भी तो उसे सिर्फ आठ साल की उम्र मे शादी करवाके उसका बचपन छीन लिया था। फिर वह निकल पड़ती है एक नई मंजिल की ओर अपनी बेटी की खूबसूरत भविष्य की तलाश मे। वह एक नये शहर मे जाके बेटी के साथ सिलाई बुनाई का काम करती है और बेटी को स्कूल भेजती है आस पास के पडोशी रितीका के स्वाभाव और चालचलन से बेहद प्रभावित थे..उसे हर बार सहायता की पेशकश करते थे मगर वह एक खुद्दार औरत नहीं वल्की एक खुद्दार माँ भी थी जिसने बेटी के लिए अपनी जिंदगी दाँव पे लगा दी थी वह फिर समझौता कैसे करती कीसी और से। देखते ही देखते जिंदगी के अनमोल 15 साल बित गये
आज रिंकू का जन्मदिन है।
रितीका- ये रिंकू जल्दी कर बेटी केक काट ले...तभी फोन आता है की हस्पीटल मे इमेरजेन्सी केश आया है।
रिंकू -चलो माँ आओ।
माँ - चल बाद मे केक काटना...तेरा जन्मदिन कहीं भागा नहीं जा रहा है। हस्पीटल मे कोई पेसेन्ट तेरा इंतजार कर रहा है अपनी जिंदगी के लिए । इसलिए जल्दी से जा ,
रिंकू -अरे माँ अपना जन्मदिन तो मना लू केक तो खा लूँ ।
माँ - तेरे जन्मदिन से बड़ा कीसी की जिंदगी है चल अब पहले हस्पीटल जा।
रिंकू पैर पटकती हुई नाराजगी से कहती है की आप बेहद बुरी हो और कुछ नहीं जानती।
माँ - हाँ मै बेहद बुरी हूँ और कुछ नहीं जानती मगर तू जा तो पहले...
रिंकू थोड़ी दूर जाके फिर दौड़कर मां के गले लगके बोलती है। मेरी दुनिया ही मेरी माँ तू है और तेरे जैसा कोई नहीं । अब अपनी बेटी को आशीर्वाद दे ताकी मैं किसी के लिए जीने की वजह बन सकूँ ।
मां का आर्शीवाद लेके रिंकू हस्पीटल पहुँचती है और इलाज शुरू करती है मगर पेसेन्ट को देखते ही हैरान रह जाती है। सामने और कोई नहीं वल्की उसका अपना बाप था, बाहर देखा तो सब अपने ही थे दादा दादी चाचा चाची, सबको पहचान लिया मगर कोई रिंकू को पहचान न सका। रिंकी दुवाओं के साथ अपरेशन शुरू करती है क्योंकि सामने पड़ा मरीज खुद उसका बाप होता है।
इलाज सफल होता है और रिंकू रोते हुए माँ को जल्दी से हस्पीटल बुलाती है। इधर सब अंदर रिंकू के पापा से मिलने जाते हैं । मा के आते ही रिंकू माँ के लगकर रोते हुये कहती है की...मां ,
आज तेरी बेटी बहुत बड़ी हो गई है...पता है आज इन हाथों से मैंने अपने बाबा को बचाया है जिस बाबा ने मुझे जन्म दिया था । रितीका के पलकों पे भी आशू थे मगर उस फैसले के लिए । जो अपनी बेटी की सपनों को पूरा करने के अपनी 15 साल की जिंदगी बिन पति के गुज|रती थी

तभी सभी उसके अपने रिंकू को धन्यवाद देने आते है तो रिंकू के साथ रितीका को देखकर सबकी आंखे फटी की फटी रह जाती है । माँ कुछ बोलती इससे पहले रिंकू सबके पैर छूने को झूकती है। तब रितीका कहती है की...ये आप सबकी वह छोटी रिंकू है जिसके सपने को मैंने पूरे करने के लिए घर छोड़ी थी। हाँ मै मुजरीम थी उस वक्त आप सबकी मगर मुझे गुनाह करना आसान लगा
अपनी बेटी की सपनों को पूरा करने के लिए ।
सबकी आखो मे बस पश्चताप के आशू थे ।
कोई कुछ भी बोल नहीं पा रहा था हर तरफ खामोशी ।
बस अवाज गूँज रही थी तो बस सिसकीयो की
उधर रिंकू रितीका सब मिलकर अपने पापा से मिलते हैं उस बाप की आखो मे पश्चतावे के आंशू के अलावा कुछ न था। हाँथ जुड़े हुए और सर शर्म से झूके हुए मगर बेटी ने गले लगकर सारे दुखो को दूर कर दिया। आज वही परिवार का हर बड़ा छोटा सदस्य
गाँव गाँव घूमकर बाल बिवाह के खिलाफ लोगों को संदेश दे रहा है।
जो कभी बाल विवाह के हक मे थे।

आज भी हमारे देश के कई हिस्सों मे बाल विवाह का जोर सोर से प्रचलन है। कोख मे बेटी हत्या बहू हत्या दहेज प्रचलन जोर शोर से है । मगर इस खास मुद्दों पर कोई आवाज नहीं उठाता मगर आरक्षण के सबको चाहिए।
अरे जब बेटीयां ही पैदा होना छोड़ देगी तो फिर ये आरक्षण कीसके लिए।
आजकल सोसल मीडिया एक तरह से सरकार है उसकी आवाज मे ताकत है मगर कभी कभी मैं हैरान रह जाता हूँ लोग फालतू की पोस्ट करके खुश हो जाते हैं ।
इसपर अवाज उठाना बेहद जरूरी है और ऐसा तब होगा जब हमारी सोच एक होगी।

फौजी

फौजी

पापा मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहता हूँ...प्लीज मेरे अच्छे पापा मान जाईये न? गरीमा अपने पापा से रूवांसी होके कहती है। मगर उसके पापा कहते हैं..अरे मेरी अच्छी बेटी..तेरे अच्छे पापा ने तेरे लिए जो लड़का पसंद किया है वह भी तेरे और तेरे पापा की तरह ही अच्छा है समझी? रही पढ़ाई पूरी करने की बात तो तू शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती है।
गरीमा- अगर लड़के वालों ने नहीं आगे पढ़ने की इजाजत नहीं दी तो?
पापा - देख बेटी..मैं तेरी हर सवाल जवाब का जिम्मेदार यंहा इस घर तक हूँ .. .शादी के बाद हर काम पे दखल देना मायके वालों के मर्यादा के खिलाफ है। हाँ अगर तेरी नजर मे कोई लड़का है तो बोल, मैं शादी करा दूंगा । बस ए सोचकर की मेरी बेटी की पसंद बाप से बेहतर थी..शायद मैं ही भलाई नहीं चाहता था अपनी बेटी की..इतना कहके गरीमा के पापा निकल जाते हैं। वैसे गरीमा आगे पढ़ने की जिद इसलिए कर रही थी क्योंकि वह एक लड़के से प्यार करती थी..और लड़का भी उससे प्यार करता था। एक तरफ प्यार और एक तरफ माँ बाप, वैसे गरीमा माँ बाप की लाडली तो थी मगर अच्छी भी थी, गरीमा की शादी एक फौजी लड़के से हो जाती है मा बाप की मर्जी से।
सुहागरात के दिन...
गरीमा- आप मेरे पापा की नजर मे बहुत अच्छे इंसान हो मगर मेरी नजर मे कोई और था, और चाहकर भी मैं उसे भुला नहीं पा रही हूँ।
फौजी मुस्कुराके कहता है.. आपने मा बाप की बात मानकर हमसे शादी की.. .अब अब आप हमसे तलाक लेके उससे शादी कर लिजीये..मा बाप की आज्ञा भी पालन हो गई और अपनी खुशी भी वापस मिल गईं।
गरीमा - आप हमसे लड़ाई झगड़ा मार पिट किये बिना बात थोड़े ही तलाक तक पहुँचती है क्या?
फौजी - हम तो सिर्फ दुश्मन को मारते है वह भी मारने से पहले एक बार समझाते है..आप तो हमारी मोहब्बत हो धर्म पत्नी हो मेरी जान हो...आपको हम कैसे मार सकते है पागल,
गरीमा - तो आप अपना दुश्मन ही बना लिजीये...
फौजी - अपना दुश्मन बनाके भी हम आपको मार नहीं सकते क्योंकि हम तो सिर्फ देश की दुशमनो को ही मारते थे...आखिर फौजी जो ठहरे हम।
गरीमा - आप ये नौकरी क्यों नहीं छोड़ देते..पढ़े लिखे है कहीं भी अच्छी नौकरी और अच्छी वेतन मिल जायेगी आपको
फौजी - hahahaha
गरीमा - इसमें हंसने जैसी क्या बात है जी?
फौजी - किस कमबख्त ने कह दिया आपको की फौजी नौकरी करता है अरे पागल..फौजी तो देश की सेवा करता है सवा सौ करोड़ देश वाशीयो की सुरक्षा करता है सीमा पे देश की दुशनो से।
गरीमा - आपकी कोई Girlfriend थी क्या?
फौजी - हाँ इश्क हुआ है मुझे बेपनाह मोहब्बत है मुझे खुदा मानता हूँ बड़ी शिद्दत से...अपने वतन को...
गरीमा - आपको मरने से डर नहीं लगता?
फौजी - फौजी मरता कहाँ है
वह शहीद होता है वह तो अमर होता है।
गरीमा - आपके अमर के चक्कर मे मैं कहीं बिधवा हो गई तो?
फौजी - आप दूसरी शादी कर लेना..वैसे भी जब कोई इंसान मरता है तो उनकी बिबीया बिधवा कहलाती है मगर फौजी जब शहीद होता है तो उनकी पत्नीयां बिधवा नहीं
शहीद की पत्नी कहलाती है।
गरीमा सोचने लगती है की कितना बिंदास और बेबाक इंसान है ये।
किसी भी चिज न घमंड न लालच
बस एक जूनून सवार है देश की सेवा के लिए।
फौजी -अच्छा जी। सवाल खत्म हो गया तो एक एक आखिरी सवाल हम भी पूछे आपसे?
गरीमा - जी जरूर पूछीये।
फौजी - आप तो मा बाप की मर्जी से मेरे साथ आई हो। खुद की मर्जी होती तो शायद कभी मुड़कर भी न देखती आप हमें । आज हमारी सुहागरात है इसलिए पूछते है कि...हम बाहर जाके सोये या आपके साथ।
थोड़ी देर खामोश रहने के बाद गरीमा बोलती है की... येदी आपकी बकबक खत्म हो गई हो तो लाईट बंद करके दरवाजा लगाके सो जाईयेगा मेरी बगल मे
हमें तो आपकी बातें सुनकर नींद आ गयी है।
एक हफ्ते बाद फौजी अपनी छुट्टी खत्म करके वापस चला जाता है।
इधर गरीमा अब भी उस लड़के से बातें करती है फोन पे। करीब तीन महीने बाद खबर आती है की...सीमा पर आतंकवादियों से लड़ते लड़ते फौजी शहीद हो गया है। गरीमा न रो सकी न खुशी हो सकी। मगर जब फौजी की पार्थिव शहर को तिरंगे मे लिपटा हुआ गाँव मे लाया गया तो हर एक की आखे नम थी गरीमा के आलावा। पूरा गाँव ही नहीं आजू बाजू गाँव शहर से लोग आये थे..भीड़ इतनी थी कि जैसे पूरा देश ही उमड़ पड़ा हो देश के सपूत को अंतिम दर्शन करने।
चारों तरफ एक ही आवाज गूँज रही थी कि जब तक सूरज चाँद रहेगा...Prince तेरा नाम रहेगा, हर किसी के हाथों मे फूल। इतना फूल की valentine day पर भी देश के इश्क बाजो के पास भी न हो। गरीमा ने देखा फौजी के चेहरे को.
कमबख्त अंतिम पल मे भी एक प्यारी सी मुस्कान जैसी थी चेहरा। जैसे बहुत जल्दी थी देश के लिए शहीद होने को,अंतिम संस्कार हो गया। अब गरीमा आजाद थी मगर मुश्किल इस बात की थी की गरिमा के गर्भ मे फौजी का तिन महीने का बच्चा ठहर गया था, घर के लोगों से  लेके गाँव के लोग
दोस्त सभी उसे येही कहते थे कि अभी तो तूने जिंदगी ठिक से जी ही नहीं कोई अच्छा लड़का देखके अपना घर बसा ले, गरीमा दो राहे पे खड़ी थी, एक तरफ फौजी का तिन महीने का बच्चा गर्भ था, दूसरी ओर सभी उसकी दूसरी बिवाह की जिद कर रहे थे। एक दिन घर मे अकेली बैठकर अपने सारो कपडो निकाल के आलमारी साफ कर रही थी तो..अचानक फौजी और उसका साथ खींचा फोटो मिला जो फ्रेम मे जडा था ए उस वक्त की फोटो थी जब फौजी डीउटी जाने से एक दिन पहले खीची थी, उस तशबीर को तशबीर को जबर्दस्ती खीची गई थी, क्योंकि गरीमा बिलकुल तैयार नहीं थी फोटो खीचवाने के लिए। इसलिए सिर्फ फौजी हंस रहा था तशबीर मे और गरीमा गुस्से मे थी।
गरीमा ने तशबीर को लेके जमीन पे बैठ गई। फ्रेम पिछे से मोटी लग रही थी, गरीमा ने सोचा कि..ये इतना मोटा क्यों है? चलो देखती हूँ खोलकर। गरीमा ने जैसे ही फ्रेम खोला उसमें एक चिठ्ठी थी थी जो फौजी ने उसके नाम लिखी थी।
प्यारी गरिमा जी love you...बुरा लगा न? कोई बात नही चलो सुधार देता हूँ I hate you forever ...बस इसे एक बार उल्टा जरूर पढ लिजीयेगा। ये खत मैंने मेरे जाने के आखरी रात को आपको लिखा था, और हमने जो तशबीर आपके साथ जबर्दस्ती खीचवाई थी उसके पिछे डलवाई थी, आप अपनी माँ बाप की खुशी के लिए हमसे शादी की थी आपने वरना आपकी खुशी तो कोई और ही खुशनसीब था। हम फौजी है हम तो बस अपने देश और देशवासियों की खुशी देखना चाहते है उनके होठो पर एक खूबसूरत मुस्कान देखना चाहते थे। और आप खुश न देखू तो फिर मैं कैसा फौजी। सच कहूँ तो माँ बाप की जोर जबर्दस्ती पर फौजी शादी करते है अगर फौजी की बस चले तो शायद ही वह किसी से शादी करे..क्योंकि दो दो जगह शिद्दत से मोहब्बत लुटाना थोड़ा मुश्किल होता है। फौजी घर से सिर्फ सीमा के लिए जाता है। मगर उसका वापस आना देश की सुरक्षा तय करती है। जब आप सामने थी तो आपको किसी और के बारे मे सोचकर भी कांप जाता था दिल...क्योंकि आपका भोलापन और मासूमीयत इस फौजी को बहुत पसंद है। मगर जाते जाते सोचा आपके लिए कुछ करूँ । क्योंकि सीमा पर जब एक फौजी तैनात होता है तो वह सिर्फ अपने देश और देशवासियों के लिए सोचता है मगर उसे अपनी जिंदगी का कोई ख्याल ही नहीं रहता। आपकी खुशी मेरी जिंदगी है। आपको हम इस खत के जरिए एक आजादी दे रहे है। आप अपनी खुशी को फिर से पा सकती हो। आप चाहो तो फिर उसी लड़के से घर बसा सकती हो जो खुशी आपके मा बाप ने मुझ पागल फौजी के गले बाँधकर आपकी खुशियों के साँसो को रोक दिया था, कमरे मे देखना एक box है चाभी उसी बोक्स के निचे रखी है । खोलने पर आपको एक मेरी फौजी वाली कमीज मिलेगी उसकी जेब मे तलाक का पेपर रखा है । हमने अपना हस्ताक्षर कर दिया है । चाहो तो अपना हस्ताक्षर करके इस पागल फौजी से छुटकारा पा सकती हो। मेरा क्या है। मै तो किस्मत से घर लौटा भी तो बेपनाह मोहब्बत लेके लौटूंगा उसके लिए जो मेरी होकर भी मेरी नहीं थी, शहीद होके लौटा तो तिरंगे मे लिपटकर आउंगा सबको रूलाने के लिए केवल उसको रूला न सकूँगा जिसकी मोहब्बत पाने के लिए अक्सर मैं अकेले मे रोया करता हूँ।
कमबख्त अगले जन्म के बारे मे भी क्या सोचू
अगले जन्म मे भी मुझे तो फौजी ही बनना है और हमसफर के रूप मे भी उसको  पाने की चाहत है
 जिसे फौजी बिलकुल पसंद नहीं । गर मिल गये उस जन्म मे भी तो बिछड़ना तो तय है इस जन्म की तरह..  शायद गर्भ ठहर गया हो तो बच्चे गीरा देना, वरना
वरना बेटा हुआ तो वह भी फौजी बनेगा
बेटी हुई तो वह किसी फौजी से ही शादी करेगी
आखीर खून किसका है? फौजी का ही न....
बस आपका होकर भी आपने जिसे कभी अपना न कहा.. वह फौजी
गरीमा खत पढ़ते पढ़ते बहुत देर तक रोती रही। फिर रोते हुए फ्रेम को ठिक से पहले जैसे ही बनाई और उपर दिवार पर टांग दी जहाँ से सोते जागते अपने फौजी को देख सकती थी, फिर रोते रोते अपना एक हाथ से गर्भ मे पल रहे बच्चे को सहलाती हुयी मुस्कुराके कहती है...
मेरे पागल फौजी का बच्चा फौजी ही बनेगा, की तभी गरीमा को कहते है की आपको हल मे बुलाया गया है।
गरीमा वैसे ही चली जाती है बिना श्रींगार किये। रोते रोते आखे फूल चुकी थी चेहरा उतरा हुआ था, हल मे पहुँचते ही गरीमा के मम्मी पापा और उसी लड़के के मम्मी पापा जिस लड़के से गरीमा प्यार करती और लड़का भी आया था। गरीमा के पिता कहते है की...देखो बेटी ए लोग तुम्हारे रिश्ता लेके आये है। और हम तो तैयार है लड़का और लड़के वाले भी और तुम्हारे सास ससुर और सभी घर वाले भी, तुम तैयार हो की नहीं बेटी?
गरीमा - आप सब लोग मुझे बिधवा समझके गलत जगह आ गये...जाईये किसी बिधवा बिचारी की घर बसाईये आप सभी मिलकर, हम तो एक बीर शहीद की पत्नी है और मेरे शहीद फौजी की आमानत जो मेरी कोख मे पल रहा है कल वह शहीद के बच्चे कहलायेगे आनाथ नहीं।
और फिर अपने घर के सास ससुर की ओर देख के कहती है की... येदी मैं आप सबको बोझ लगती हूँ तो घर से निकाल दिजीए वरना शहीद की पत्नी का रिश्ता दोबारा इस घर मे न आये। मेरा पति तिरंगे मे लिपटा हुआ आया था, और मैं तिरंगे का अपमान कभी नही कर सकती बोलकर सीधा कमरे मे चली आती है। सब हैरान थे मगर गरीमा का बाप मन ही मन कहता है।
नाम गरीमा रखा था मैंने
आज मेरी बेटी ने अपने नाम की पहचान भी करा दी सबको।...एक सलाम तो बनता है दिल से ...
शहीद की धर्मपत्नी है।

जय हिन्द ।

एक नसीहत

एक नसीहत

ट्रेन में एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका सामने वाली बर्थ पर रिजर्वेशन था ..
उसके पापा उसे छोड़ने आये थे। .
अपनी सीट पर बैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा "डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी यहाँ दस मिनट
का स्टॉपेज है।" .
उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा "कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज शुरू हो रहे हैं काफी दिन बाद आओगी तुम।"

लड़की शायद अध्ययन कर रही होगी, क्योंकि उम्र और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।
ट्रेन चलने लगी तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता को हाथ हिलाकर बाय कहा :-
"बाय डैडी.... अरे ये क्या हुआ आपको !
अरे नहीं प्लीज"
पिता की आँखों में आंसू थे।

ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती जा रही थी और पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।

लड़की ने फोन लगाया..
"हेलो मम्मी.. ये क्या है यार!
जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई, डैडी तो रोने लग गये..

अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी.
भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से..
अच्छा बाय..
पहुंचते ही कॉल करुँगी.
डैडी का ख्याल रखना ओके।" .
मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा से देखता रहा
कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों से मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी.
उन आँखों में नमी भी नहीं थी।

कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन
लगाया- "हेलो जानू कैसे हो.... मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ..
हाँ अभी चली है यहाँ से,
कल अर्ली-मोर्निंग पहुँच जाउंगी.. लेने आ जाना.
लव यू टू यार,
मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हे.. बस कुछ घंटे और सब्र कर लो कल तो पहुँच
ही जाऊँगी।"

मैं मानता हूँ दोस्तों...कि
आज के युग में बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।

मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं। मैं सिर्फ उनकी बात कर रहा हूँ जो पाश्चात्य
संस्कृति की इस हवा में अपने कदम बहकने से नहीं रोक पाते

और उनको माता-पिता, भाई- बहन किसी का प्यार याद नहीं रह जाता सिर्फ एक प्यार ही याद रहता है!!!

वो ये भी भूल जाते हैं कि उनके माता-पिता ने कैसे-कैसे साधनों को जुटा कर और किन सपनों को संजो कर अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर पढने भेजा है।

लेकिन बच्चे के कदम बहकने से उसका परिणाम क्या होता है??
वो ये नहीं जानते हैं.,

इसलिये सभी से रिक्वेस्ट है
वो अपने माता पिता के जज्बातों के साथ खिलवाड़ नहीं करें.!!
खासकर लड़कियां... क्योंकि लड़की की अपनी इज्जत के साथ सारे परिवार की इज्जत जुडी होती है..||


मेरी पोस्ट से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो SORRY दोस्तो.....

ससुराल

ससुराल

घर में शादी का माहौल चल रहा था,, शायद पहली ऐसी शादी जिसमे लड़की  के भाई-भाभी कोई भी शामिल नहीं थे ,, माँ बाप का साया बचपन में ही उठ गया था ,, सुमन की शादी हो रही थी।  सास ससुर कन्या दान करने की तयारी में लगे थे,, अभी एक साल पहले सुमन के पति सार्थक का एक भयानक दुर्घटना में मौत हो गयी थी।  सुमन और सार्थक की शादी को अभी 3 साल पुरे होने वाले ही थे की ये हादसा घटित हो गया।  ससुराल इतना अच्छा मिला उसे मायके से भी अत्याधिक प्यार मिला। 

एक साल पहले सार्थक के मृत्यु पर सभी घरवाले शोकग्रस्त थे , बड़ा भाई सुमन को साथ ले गए , हालांकि वो त्यार भी नहीं थी।  चली गई शायद  मन हल्का हो जाये ,, सास ससुर ने भी कहा , "बेटा तुम हमारी बेटी हो बहु नहीं,, जब दिल करे आ जाना "

एक दिन उसके कानो में भाई के स्वर पड़े  " ‘तो क्या हो गया बेचारी विधवा है खुश हो जाएगी |’ दरअसल भाभी, भाई को उपहार देने के लिए उलहाना दे रही थी।

सार्थक उसे हमेशा अपनी पैतृक सम्पति के बारे में बताता रहता था और कहता था हमें किसी पर भी ज़रुरत से ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए वो चाहता था की सुमन को भी उसकी सम्पत्ति की जानकारी रहे | लेकिन ये बात जब भी वो शुरू करता सुमन कहती क्या जरूरत है मुझे ये सब जानने की आप तो हमेशा मेरे साथ रहेंगे इस पर सार्थक कहता समय का कोई भरोसा नहीं है चाहे पति हो या पत्नी उन्हें एक दूसरे के बारे में हर एक बात पता होनी चाहिए| जिससे की कभी एक को कुछ हो जाए तो दूसरे को दुःख के दिन न देखना पडे तुम तो पढ़ी लिखी हो सब समझ भी सकती हो |
लेकिन सुमन उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती | मगर हुआ वही जिसका डर था सार्थक उसको अकेला छोड़ कर चले गए।

बड़ा भाई उसे ये कहकर अपने घर ले आया था की तू मेरी बहन नहीं बल्कि बेटी है लेकिन आज उसकी ये बेटी उसके लिए बेचारी विधवा बनकर रह गयी थी| उसका भाई ही उसकी सारी धन सम्पत्ति का लेखा जोखा रखता था और उससे अपने और अपने परिवार के शौक भी पूरे कर लेता था | जिस पर सुमन ने कभी आपत्ति नहीं जताई | लेकिन भाई की ऐसी बात सुनकर सुमन को बहुत ग्लानि हुई और उसके आत्म सम्मान को गहरा आघात लगा उसे अपना आने वाला भविष्य अनिश्चित और दुखद लगने लगा क्योंकि वो  एक विधवा थी ,,उसे अफ़सोस हो रहा था की ... उसे आंखें बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए था | उस रात वो सो नहीं पायी सार्थक के शब्द उसके कानों में गूंजते रहे | दूसरे दिन उसने अपनी सम्पत्ति की कमान खुद सम्भालने का निर्णय अपने भाई को सुना दिया और सामान समेटकर अपने घर चली आई |

आते ही सास से लिपट कर फफक फफक कर रो पड़ी और बोली "माँ में  हमेशा हमेशा के लिए छोड़ आयी " "कोई नहीं मेरी बच्ची यही तेरा घर है यही रह जैसी तुम्हारी मर्जी।  ससुर गंगा राम ने सास दुर्गा देवी से एक दिन कहा ,, हमारा क्या है आज है कल नहीं ,, बिटिया की अभी सारी उम्र पड़ी है।  उन्होंने सुमन को बड़ी मुश्किल से राजी किया ,, नारी जब किसी को मन मंदिर में बिठा लेती है तो दूसरे की जगह नहीं बन पाती।
बहुत समझाने पर सार्थक के ममेरे भाई नितिन के साथ उसका रिश्ता तय हो गया ,, आज विवाह होने जा रहा था।

सुमन ने बचपन में माता पिता को खो दिया , आज उसे सास ससुर ही माता पिता लग रहे थे ,, विदाई के समय सुमन बाबूजी से और माँ से लिपट लिपट कर रो रही थी ,, शायद ये समाज के लिए अनोखी मिसाल थी।

स्त्री होना

स्त्री होना..

सुनो,
अगर कहुँ मैं
कि तुम ग़ुलाब सी सही लेकिन
एक अंगार भी हो
कुछ ज़्यादा तो नहीं होगा न
कि जानती हो हक़ अपने
कि मुक़ाबला करना आता है तुम्हें
कि हर बात पर कान नहीं रखतीं
कि अड़ जाती हो जो सही है
कि प्रेम में प्रेयसी हो जाना
और जीवन-युद्ध में चंडी रूप
कि चाँद सी शीतलता और
सूरज सा दहकता तेज भी हो
कि प्रेम में समर्पण और
ज़िम्मेदारियों में संपूर्ण हो
कि महकती तो हो गुलाब सी
और हाथ में अनदेखा नश्तर भी साथ है
कि एकदम शुद्ध हँसी और
उतनी ही शुद्ध जीवन-यात्रा भी
कि पुरुष हो नहीं सकता
वो जो तुम हो; चाहकर भी
कि तुम प्रेम हो, समर्पण हो
ज़िद हो और पिघलती भी हो
कि स्त्री ही तो हो
तुम सा कोई और
हो भी तो नहीं सकता
समझता हूँ अब
एक पुरूष होकर भी
कि कितना भी कहुँ
कुछ ज़्यादा होगा भी नहीं
कि शब्द कम ही पड़ेंगे
कलम मौन ही रहेगी
कि स्त्री होना तो
ईश्वर को भी सुलभ नहीं !

टिफिन

टिफिन

"मिसेज दीपिका वर्मा, आप अपने बेटे को टिफ़िन देकर क्यों नहीं भेजतीं? वह रोज अपने पार्टनर से टिफ़िन मांगकर खाता है।"
प्रिंसिपल कहे जा रहे थे और  मिसेज वर्मा का चेहरा गुस्से से लाल हुए जा रहा था। वह रोज सुबह नया से नया डिश बनाकर अमन के लिये टिफ़िन में रखती थी। वह तो बताता था कि उसके दोस्तों को भी उसका टिफ़िन बहुत पसंद हैं। पर यहां तो....
"सर, क्या मैं अमन से बात कर सकती हूँ? मुझे लगता है, कोई उसका टिफ़िन चुरा लेता होगा।" दीपिका बोली।
"मैंने भी यही सोचा था पर उसने कुछ ऐसा बताया कि.....।" कहते हुए प्रिंसिपल सर रुक गए। उन्होंने सिर नीचे कर लिया। फिर भी उनकी आंखों में भर आए आँसू दीपिका से छिप न सके।
"क्या, क्या बताया अमन ने?" कुछ गलत के अंदेशे से दीपिका कांप उठी।
"छोड़िये, आपके ससुर जी कैसे हैं। आपकी सास के गुजरने के बाद तो वह काफी अकेलापन फील करते होंगे।" प्रिंसिपल ने अचानक पूछा।
"वो ठीक हैं। उनकी बात छोड़िये, अमन के बारे में बताइये।" दीपिका अधीरता से बोली।
"सुबह अमन को तैयार करने के चक्कर में आप  तो उनका ख्याल ही नही रख पाती होंगी।"
"नहीं ऐसा नहीं है। अमन को जब वह बस में चढ़ाकर लौटते हैं , तो उन्हें चाय देने से लेकर नाश्ता तक मैं ही कराती हूँ।"
"अमन बता रहा था कि एक बार उन्होंने चाय और नाश्ते के लिए कहा, तो आपने मना कर दिया कि अभी अमन का नाश्ता बनाने का काम है। बाद में बनाकर दे देंगी।" कहते हुए प्रिंसिपल का चेहरा गंभीर हो उठा।
"हां, पर.... इसका अमन से क्या संबंध?" दीपिका की उलझन बढ़ती जा रही थी।
"आपका बेटा अपने भूखे-प्यासे दादाजी को अपना टिफ़िन खिला देता है। दादाजी ने पहले दिन ही खाने से इनकार कर दिया था। तब पोते ने उनके लिये झूठ बोलना सीखा। अगले दिन उसने दादाजी से  बहाना किया कि उसने आपसे दो टिफ़िन रखवाए हैं। एक रास्ते मे खाने के लिये और एक लंच टाइम के लिये। इस तरह वह अपना टिफ़िन दादा जी को खिला देता है।"
"क्या......?" दीपिका का मुंह खुला का खुला रह गया।
"ऐसा क्यों होता है मिसेज वर्मा कि बच्चे दूसरे के मन को हम बड़ों से पहले पढ़ लेते हैं?" कहते हुए प्रिंसिपल की आवाज में कुछ तल्खी आ गयी थी।
"वो...। आई एम सॉरी सर। आइंदा ऐसा नहीं होगा।" शर्म से गड़ते हुए दीपिका ने धीरे से कहा।
"और प्लीज। एक रिक्वेस्ट है आपसे। अमन को कुछ न कहियेगा। उसे नहीं पता चलना चाहिये कि मैंने सब बात आपको बता दी है। नहीं तो उसका भोलापन छिन जायगा।"
"डोंट वरी सर, मेरे बेटे ने जो पाठ मुझे पढ़ाया, वो मैं जिंदगी में नहीं भूलूंगी। अब उसे अपना टिफ़िन दादाजी को खिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" कहते हुए दीपिका उठी और धीरे धीरे कमरे से बाहर निकल गयी।

मेल्विन

एक महिला और उसका छोटा सा बच्चा समुंद्र की लहरों पर अठखेलियां कर रहे थे, और पानी का बहाव काफी तेज था। उसने अपने पुत्र की बांह मजबूती से पकड़ रखी थी और वे प्रसन्नतापूर्वक जलक्रीड़ा में संलग्न थे, कि अचानक पानी की एक विशाल भयानक तरंग उनके सामने प्रकट हुई।

उन्होंने भयाक्रांत होकर उसको देखा, ज्वार की यह लहर उनके ठीक सामने ही ऊपर और ऊपर उठती चली गई, और उनके ऊपर छा गई।
जब पानी वापस लौट गया तो वह छोटा बच्चा कहीं दिखाई नहीं पड़ा। शोकाकुल मां ने मेल्विन-मेल्विन तुम कहां हो? मेल्विन! चिल्लाते हुए पानी में हर तरफ उसको खोजा।

जब यह स्पष्ट हो गया कि बच्चा खो गया है, उसे पानी सागर में बहा ले गया है, तब पुत्र के वियोग में व्याकुल मां ने अपनी आंखें आकाश की ओर उठाई और प्रार्थना की,
ओह, प्रिय और दयालु परम पिता!
कृपया मुझ पर रहम कीजिए और मेरे प्यारे से बच्चे को वापस कर दीजिए।

 आपसे मैं आपके प्रति शाश्वत आभार का वादा करती हूं।
मैं वादा करती हूं कि मैं अपने पति को कभी धोखा नहीं दूंगी; मैं  अपना आयकर  जमा करने में कभी धोखा नहीं करूंगी; मैं अपनी सास के प्रति दयालु रहूंगी; मैं सारे व्यसन छोड़ दूंगी! सभी गलत शौक, बस केवल कृपा करके मेरे पुत्र को लौटा दीजिए।’

बस तभी पानी की एक और दीवार प्रकट हुई और उसके सिर पर गिर पड़ी।जब पानी वापस लौट गया तो उसने अपने छोटे से बेटे को वहां पर खड़ा हुआ देखा। उसने उसको अपनी छाती से लगाया, उसको चूमा और अपने से चिपटा लिया।

 फिर उसने उसे एक क्षण को देखा और एक बार फिर अपनी निगाहें स्वर्ग की ओर उठा दीं। ऊपर की ओर देखते हुए उसने कहा, लेकिन उसने हैट लगा रखा था!!
*मन* यही है, बच्चा वापस आ गया है, लेकिन हैट खो गया है। अब वह इसलिए प्रसन्न नहीं है कि बेटा लौट आया है, बल्कि अप्रसन्न है कि हैट खो गया था—फिर शिकायत।

क्या तुमने कभी देखा है कि *तुम्हारे मन* के भीतर यही हो रहा है या नहीं?
सदा ऐसा ही हो रहा है। जीवन तुमको जो कुछ भी देता है उसके लिए तुम धन्यवाद नहीं देते, तुम बार—बार हैट के बारे में शिकायत कर रहे हो। तुम लगातार उसी को देखते जाते हो जो नहीं हुआ है, उसको नहीं देखते जो हो चुका है। तुम सदैव देखते हो और इच्छा करते हो और अपेक्षा करते हो, लेकिन तुम कभी आभारी नहीं होते।

तुम्हारे लिए लाखों बातें घटित हो रही हैं, लेकिन तुम कभी आभारी नहीं होते। तुम सदैव चिड़चिड़ाहट और  शिकायत से भरे रहते हो, और सदा ही तुम हताशा की अवस्था में रहते हो।

ट्रू लव स्टोरी

" ट्रू लव स्टोरी"

ट्रेन चल पड़ी।
उस मुकाम की ओर जिसे मैं आठ साल पहले छोड़ आया था।
उस मंजिल की और जिसे पाने की खातिर मैने खुद को भुला दिया था। आठ साल की अथक और जी तोड़ मेहनत रंग लाई थी और मेरा सलेक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया था।
मैं आई. ए. एस. बन गया था। अपनी मोहब्बत को पाने के लिए ये सफर बड़ा ही दर्दनाक और थका देने वाला था।
परसों ही रिजल्ट आया था। जो पुराने दोस्त आठ साल से मुझे भुलाए बैठे थे एक एक कर सबका फोन आ गया।
बधाइयों का तांता लग गया था
एक दोस्त जो मेरा कुछ ज्यादा ही अजीज था
उससे मैंने पूछा:-" प्रेरणा कैसी है?
वो बिदक गया बोला:-"अभी तक भुला नही उसको? अरे जिसके कारण तुझे गाँव छोड़ना पड़ा। जिसके कारण तू पूरे गांव में आवारा कहलाने लगा उसका भूत तेरे दिमाग से निकला नही। अब तू आई ए एस बन गया है। ऊपर की रैंक आई है । पक्का कलेक्टर बनेगा। कहाँ वो अनपढ़ गवाँर प्रेरणा और कहाँ तू?
छोड़ उसकी चर्चा। तेरी शादी करोड़ पति की बेटी से करवाऊंगा। एक दम हीरोइन लगती है। सुंदर इतनी है जैसे परखनली से निकाली गई हो।"
मैं बीच मे बोल पड़ा:- "तू सिर्फ ये बता प्रेरणा कैसी है?"
वो रूखे स्वर में बोला:-" ठीक है " हर समय घर मे ही रहती है शादी नही की। जबरदस्ती शादी करने की कोशिश की तो तालाब में कूद गई। किसी ने देख लिया इस कारण बच गई।

इतना सुनकर मैंने फोन काट दिया था। दर्द सा उठा था दिल मे। जानकर की उसने आत्महत्या करने की कोशिश की। जबकि उसने वादा किया था...... हाँ वादा...
ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। यादों के पंछी अपने घोंसले से निकल कर चहचहाने लगे थे। कि किस तरह उसके भाइयों ने मुझे पीट कर अधमरा कर दिया था।
मेरा गांव में रहना मुश्किल नही नामुमकिन कर दिया था।
आखिर मैंने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था।
जिस दिन स्टेशन पहुंचा। न जाने उसे कैसे पता चल गया।छुपकर आ पहुंची थी।
रोते रोते उसने पूछा था:-" जा रहे हो?"
"हाँ"
"लौट कर कब आओगे?"
"कभी नही"
"बस इतना ही प्यार था क्या?"
"तू भी साथ चल"
"नही चल सकती, वो तुझे मार देगें"
"तो क्या हुआ? दोनो मरेगें साथ।"
"नही हमे मरना नही, जीना है"
"तो हम कैसे मिलेंगे?"
"तू बड़ा आदमी बनकर लौट मेरे लिए"
"तब तक तेरी शादी हो गई तो?"
'" नही होगी"
"हो गई तो?"
"बोला न,, नही होगी,, बस तू जल्दी लौटना।"
ट्रेन चल पड़ी थी।वो साथ साथ दौड़ने लगी।
तू मेरा इंतजार करना, मैं लौट के आऊंगा"
वो जोर लगा कर बोली, "मैं इंतजार करूंगी" मैं इंतजार करूंगी" ,,,मैं इंतजार,,, उसके बाकी के शब्द ट्रेन की आवाज में खो गए थे।
मग़र पिछले आठ वर्षों में उनकी प्रतिध्वनि मेरे कानों में हर पल हर लम्हा गूंजती रही थी,,,
धीरे धीरे वही शब्द मेरी ताकत बन गए। मैं एक सामान्य बुद्धि और नकारा सा लड़का उसकी मोहब्बत के दम पे बड़ा आदमी बन गया था।
मेरे माँ-बाप तो बचपन मे ही गुजर गए थे। भाई भाभियों को मुझसे कोई मतलब नही था। इस दुनिया मे प्रेरणा के सिवा मेरा था ही कौन??
आज मैं जो भी था उसकी बदौलत था।
जब गाड़ी स्टेशन पर रुकी तो पूरा गाँव मेरे स्वागत में खड़ा था।
अजीब बात थी मैंने एक दोस्त को आने की खबर दी थी। मगर गाँव भर के लोग मेरे स्वागत में खड़े थे।
मेरा परिवार भी था। मगर न प्रेरणा थी न उसके घर के लोग।
रास्तेभर मैं उसकी दो आंखों को तलाशता रहा।
जब उसके घर के आगे से निकले तो मुझसे रहा नही गया।
मैं सीधा उसके घर मे घुस गया।
उसके भाई-भाभी, माँ-बाप सब मुझे आश्चर्य से देखने लगे।
फिर उसका बड़ा भाई खूंखार चेहरे वाला आगे बढ़ा और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला:-" शाबाश, तुझसे अच्छा लडका हम नही खोज सकते अपनी बहन के लिए। जा वो अंदर बैठी है। आठ साल से तेरा ही इंतजार कर रही है।"
पंख लग गए थे कमबख्त मेरे।
मैं तेज दौड़ा।
वो टूटे-फूटे कमरे में दुबकी सी बैठी थी।
बहुत दुबली हो गई थी।
जैसे वर्षो से बीमार हो।
मुझे देख कर दो शब्द निकले उसके मुख से :-"तुम आ गए"
मेरे लब्ज खो गए थे। कुछ मुह से निकला ही नही। हाँ आंखे जरूर भीग गई थी।
वो मेरे तरफ तेजी से लपकी तो लड़खड़ा गई थी । गिरने को हुई तो मेरी बांहों ने उसे थाम लिया। हमेशा के लिए।

Friday, June 21, 2019

कर्म एक सीख

कर्म एक सीख...
     
एक भिखारी रोज एक दरवाजें पर जाता और भिख के लिए आवाज लगाता, और जब घर मालिक बाहर आता तो उसे गंदी_गंदी गालिया और ताने देता, मर जाओ, काम क्यूं नही करतें, जीवन भर भीख मांगतें रहोगे, कभी_कभी गुस्सें में उसे धकेल भी देता, पर भिखारी बस इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें,
एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था, शायद व्यापार में घाटा हुआ था, वो भिखारी उसी वक्त भीख मांगने आ गया, सेठ ने आओ देखा ना ताओ, सीधा उसे पत्थर से दे मारा, भिखारी के सर से खून बहने लगा, फिर भी उसने सेठ से कहा ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें, और वहां से जाने लगा, सेठ का थोड़ा गुस्सा कम हुआ, तो वहां सोचने लगा मैंने उसे पत्थर से भी मारा पर उसने बस दुआ दी, इसके पीछे क्या रहस्य है जानना पड़ेगा, और वहां भिखारी के पीछे चलने लगा,
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जालिल करता गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें, अब अंधेरा हो चला था, भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था, भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे, एक बुढिया सोई थी, जो भिखारी की पत्नी थी, जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी, उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी, उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कहा फूट गया?
भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही किसी ने कुछ नही दिया सबने गालिया दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सर फूट गया, भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं, याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे, क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही किया, याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी, बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा हाँ,
कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जालिल करते थे, कैसे हम उसे कभी_कभी मार वा धकेल देते थे, अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुजे, कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था, जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ दी, एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया,
और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, मैं नही, आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी,फिर भिखारी ने कहा, पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी जात्ती क्यू ना हो जाए, मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता, की कोई और इतने बुरे दिन देखे, मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्यूकि उनको मालूम ही नही, वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं,
सेठ चुपके_चुपके सब सुन रहा था, उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी, बुढे_बुढिया ने आधी रोटी को दोनो मिलकर खाया, और प्रभु की महिमा है बोल कर सो गयें,
अगले दिन, वहाँ भिखारी भिख मांगने सेठ कर यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटिया निकल के रखी थी, उसने भिखारी को दी और हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गयी, भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे, और वो वहाँ से चला गया,
सेठ को एक बात समझ आ गयी थी, इंसान तो बस दुआ_बद्दुआ देते है पर पूरी वो ईश्वर वो जादूगर कर्मो के हिसाब से करता हैं,,,,,,,,

     हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ, सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास 

Wednesday, June 19, 2019

परिस्थिती के लिए कोन जिम्मेदार

एक Couple (युगल) को शादी के 11 साल बाद एक लड़का हुआ। वे बहोत ही प्रेमी Couple थे और उनका लड़का उनकी आखो का तारा था।
एक सुबह, जब वह लड़का तक़रीबन 2 साल का था, पति ने (लड़के के पिता) एक दवाई की बोतल खुली देखी उसे काम पर जाने के लिए देरी हो रही थी इसलिए उसने अपनी पत्नी से उस बोतल को ढक्कन लगाने और अलमारी में रखने कहा। लड़के की मम्मी रसोईघर में तल्लिन थी, वो ये बात पूरी तरह से भूल गयी थी।

लड़के ने वो बोतल देखी और खेलने के इरादे से उस बोतल की ओर गया, बोतल के कलर ने उसे मोह लिया था इसलिए उसने उसमे की दवाई पूरी पी ली थी। उस दवाई की छोटे बच्चो को छोटी सी मात्रा भी जहरीली हो सकती थी।

जब वह लड़का निचे गिरा, तब उसकी मम्मी उसे जल्द से जल्द दवाखाने ले गयी जहा उसकी मौत हो गयी। उसकी मम्मी पूरी तरह से हैरान हो गयी थी, वह भयभीत हो गयी थी कि कैसे वो अब अपने पति का सामना करेंगी?

जब लड़के के परेशान पिता दवाखाने में आये तो उन्होंने अपने बेटे को मृत पाया और अपनी पत्नी और देखते हुए सिर्फ चार शब्द कहे।

आपको क्या लगता है कौन से होंगे वो चार शब्द?

पति ने सिर्फ इतना ही कहा- “ I Love You Darling”.

उसके पति का अनअपेक्षित व्यवहार आश्चर्यचकित करने वाला था। उसका लड़का मर चूका था। वो उसे कभी वापिस नहीं ला सकता था। और वो उसकी पत्नी में भी कोई कसूर नहीं ढूंड सकता था।
इसके अलावा, अगर उसने खुद ने वह बोतल उठाके बाजू में रख दी होती तो आज उसके साथ यह सब न होता।

वो किसी पर भी आरोप नहीं लगा सकता था। उसकी पत्नी ने भी उनका एकलौता बेटा खो दिया था। उस समय उसे सिर्फ अपने पति से सहानुभूति और दिलासा चाहिये थी। और यही उसके पति ने उस समय उसे दिया।

कभी-कभी हम इसी में समय व्यर्थ कर देते है की परिस्थिती के लिए कोन जिम्मेदार है ? या कोण आरोपी है ?
ये सब हमारे आपसी रिश्तो में होता है। जहा जॉब करते है वहा या जिन लोगो को हम जानते है उस सभी के साथ होता है, और परिस्थिती के आवेश में आकर हम अपने रिश्तो को भूल जाते है और एक दुसरे का सहारा बनने के बजाये एक दुसरे पर आरोप लगाते है।
कुछ भी हो जाये, हम उस व्यक्ति को कभी भी नहीं भूल सकते जिसे हम प्रेम करते है, इसीलिए जीवन में जो आसान है उसे प्रेम करो।
आपके पास अभी जो है उसे जमा करो। और अपनी तकलीफों को विचार कर-कर के बढ़ाने के बजाये उन्हें भूल जाओ।
उन सभी चीजो का सामना करो जो आपको अभी मुश्किल लगती है या जिनसे आपको डर लगता है सामना करने के बाद आप देखोंगे के वो चीजे उतनी मुश्किल नहीं है जितना की आप पहले सोच रहे थे।
हमें परिस्थिती को समझकर ही लोगो के साथ व्यवहार करना चाहिये, और लोगो कठिन परिस्थितियों में उनका हमदर्द बनना चाहिये।

असली पूजा

ये  लड़की  कितनी नास्तिक  है ...हर  रोज  मंदिर के  सामने  से  गुजरेगी  मगर अंदर  आकर  आरती  में शामिल  होना  तो  दूर, भगवान  की  मूर्ति ...